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________________ ( ए४) · शब्दार्थः -- तेज शूरवीर ने तेज पंक्ति वली तेनी-ज श्रमे निरंतर प्रशंसा करीये बीये के, जेनुं चारित्ररूप धन निरंतर इंद्रियरूप चोरोए बुंटी लीधुं नथी. ॥ १ ॥ इंदिय चवसतुरंगे, दुग्गइ मग्गाणु धाविरे निश्वं ॥ जाविच्य जवस्सरुवो, रूंज जिणत्रयण रस्सीदिं श्‍ शब्दार्थ : - इंद्रियरूप चपल घोमान निरंतर दुर्गतिरूप मार्गमां दोमी रह्या बे, तेमने संसार स्वरूपनी जावना करनारो पुरुष श्री जिनराजनों वचनरूप रासयी रोके बे. ॥ २ ॥ इंदियधुत्ताणमहो, तिलतुस मित्तंपि देसु मा पसरं ॥ जद दिन्नो तो नीच, जब खणो वरिसको मिसमं ॥३॥ शब्दार्थ :- हे प्राणिन् ! तुं इंद्रियरूप चोरोने तलनां फोतरा मात्र पण प्रसरवा दश नहि. कारण जो प्रसरवा दिधा तो एक कण क्रोको वर्ष समान थाय तेवां दुःखो पामीश. ॥३॥ . अजिईदिएहिं चरणं, कछंव घुणेहि किरइ असारं ॥ तो धम्मचिहि दहं, जश्यवं इंदियजयंमि ॥ ४ ॥ शब्दार्थ :- इंडियने न जीतनारा प्राणीनुं चारित्र घुणे (लाकांना जीवोए) करमेलां लाककांनी पेठे सार रहित बे, माटे धर्मनार्थये इंद्रियोने जीतवामां दृढ उद्यम करवो. ॥४॥ जद कागिणी देजं, कोम रयणाण हारए कोई ॥ तद तु विसय गिधा, जीवा हारंति सिद्धिसुहं ॥५॥ शब्दार्थ:-जेम कोई मूर्ख एक कोमीने माटे कोमी रत्नने द्वारे तेम तु एवा विषयमां श्रासक्त थयेश्वा जीवो मोक्ष सुख ने हारी जाय के ॥ ५ ॥
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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