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है । अध्यापक भोगीलाल ज. सांडेसरा, एम. ए., द्वारा गुजराती भाषामें लिखित 'वास्तुपालन विद्यामण्डल अने बीजा लेखो' इस नामके पुस्तकमें अमरचन्द्रसूरिकृत अनेक ग्रन्थोंका उल्लेख तथा उक्त सूरिका विस्तृत परिचयभी है । जिज्ञासुओंसे उस पुस्तकके अवलोकनकी प्रार्थना है । इससे यह बातभी स्पष्ट है कि उक्त सूरि वास्तुपालके समकालीन (तेरहवीं सदीके उत्तरार्ध तथा चौदहवीं सदीके पूर्वार्ध) थे । यहां यह उल्लेखनीय है कि उक्त पुस्तकमें उक्त सूरिकृत कारकविवरणका उल्लेख नहीं है । उक्त पुस्तकमें उद्गीत उक्तसूरिकी प्रतिभाकी यशोगाथाको ध्यानमें रखते हुए तथा इस कारकविवरणकी रचनाको देखते हुए इसके कर्ता पण्डित अमर. चन्द्रके विषयमें उक्त अमरचन्द्र सूरिसे भिन्न होनेका संशय होता है । किन्तु साधनके अभावसे इस विषयमें किसी निश्चय पर पहुंचनेका भार संशोधकोंके उपर छोड़नेमें ही सुरक्षा है । ऐसा भी होसकता है कि यह कारकविवरण उनकी प्राथमिक रचना हो ।
कारकविवरणभद्रङ्करोदया :- कारकविवरणकी भद्रकरोदया नामकी व्याख्या वास्तवमें कारकविवरणको कारिकाओंको निमित्त बनाकर कारकरहस्योंके विवेचनका एक सफल प्रयास है-ऐसा कहना कोई अत्युक्ति नहीं । इस व्याख्यामें कारकका स्वरूप उनके भेदप्रभेदोंके स्वरूप आदिका मध्यमरूपसे प्राञ्जल एवं मार्मिक विवेचन कियागया है । तथा द्विकर्मक धातु, प्रयोज्यकर्म, ‘कृतपूर्वी कटम् ' आदि स्थानों में व्याख्याकारकी स्वतन्त्र विचारसृष्टि प्रशंसनीय, · मननीय एवं हृदयग्राह्य है । तथा प्रत्येक कारकके अपने प्रकरणमें ही उपपद विभक्तियों, अर्थविशेषमें होनेवाली विभक्तियों