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नामके ग्रन्थके प्रकाशनसे बहुत अंशोंमे हो जाती है- यह बात प्रस्तुत ग्रन्थके अवलोकनसे अपने आप स्पष्ट हो जाती है। इसलिये प्रस्तुत ग्रन्थकी उपादेयता एवं संग्रहणीयता में सँशयका अवकाश नहीं रहता ।
पुस्तक परिचय :- - प्रस्तुत पुस्तक कारमाला " में, पण्डित श्री अमरचन्द्रकृत ' कारकविवरण' महोपाध्याय पशुपति कृत ' कारकपरीक्षा ' तथा कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य कृत व्याश्रयमहाकाव्य से उद्धृतकर ' कारकत्र्याश्रय' का समावेश किया गया है। तथा इन तीनों प्रकरणोंके ऊपर पन्यासप्रवर श्री शुभङ्करविजयजी गणिवर कृत भद्रङ्करोदया नामकी व्याख्या तथा इनके शिष्य मुनिराज श्री सूर्योदयविजयजी कृत प्रभा नामकी टिप्पणी है । इस पुस्तक में प्रथम दो ( कारक विवरण तथा कारकपरीक्षा ) प्रकरणों में कोष्टकान्तर्गत पाठों तथा प्रभा टिप्पणीमें दिये गये पाठान्तरोंके देखने से ऐसा ज्ञात होता है कि - हस्त लिखित मूल प्रतिमें लिपिकरके प्रमादसे बहुतसे अशुद्ध पाठ तथा अशुद्धियां थीं । जिसके संशोधन में व्याख्याकारका श्रम तथा प्रतिभा अवश्य हीं प्रशंसनीय हैं । ग्रन्थ देखनेके बाद मेरी उक्तिका सभी एकमत से समर्थन करेंगे- इसमें कोई संशय नहीं ।
संस्कृत भाषाके व्याकरणोंमें शब्द तथा शैली भिन्न होनेपर भी प्रतिपाद्य विषय समान होनेके कारण सैद्धान्तिक विषयों में मतभेद नहीं जैसा हीं है । जैसे, कारक तथा उसके भेदप्रभेदों के तथा
के विषय में भाषाका आधार लौकिक होने के कारण-मतभेदका अवकाश अल्प होने से सभी एकमत हीं हैं । फिरभी
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