________________
जे सुख उपजे छे ते सुखनो स्वाद अध्यात्मशास्त्राना स्वादनो जे समुद्र छे तेना एक बिंदुमात्र छे " ( अ. सा. श्लो. ९) परंतु dit प्राप्ति अत्यंत मुश्केल छे. “ जेम बनने विषे घर, दरिद्रने धन, अंधारामां उद्योत, तथा मरुदेशने विषे जे पाणी, ते दुःखे पामवा योग्य छे, तेम जे धन्य प्राणी होय छे तेने ज अध्यात्मशास्त्र कलियुगने विषे प्राप्त थाय छे. " ( अ. सा. श्लो. १७ ) अध्यात्मनो आ रस अमर्यादित छे, निरवधि छे, अखुट छे, अनंत छे. “ कामनो जे रस ते भोगवतां सुधी मधुर छे. भलां भोजननो रस ते जमवाना वखत सुधी मधुरपणे वर्ते छे, पण अध्यात्मशाखनी सेवानो जे रस ते तो निरवधि छे, केमके ते प्रारंभकाळथी मांडीने सदा वधतो ज रहे छे, पण किवारे विरस न थाय. " ( अ. सा. श्लो. २१ )
66
अध्यात्म ज्ञाननी प्राप्तिथी ज मनुष्य महान् थइ शके छे. ते विना साची महत्ता आवती नथी. " जे प्राणी निवे अध्यात्मशास्त्राने पाम्या नथी अने आचार्य पंडितपणुं इच्छे छे ते पण व्यर्थ छे. " ( अ. सा. श्लो. ११ )
ग्रंथनी भाषा संस्कृत छे, परंतु संस्कृतनो सामान्य ज्ञाता पण समजी शके एवी सरळता अने सुगमता तेमनी भाषामां छे. तेमनी काव्यशक्ति घणा उच्च प्रकारनी छे. तेमनां गुजराती काव्योमां नजरे पडती मधुरता, प्रासादिकता, शब्दलालित्य अने मनोहर उपमाओ तेमना संस्कृत काव्यमां पण नजरे पडे छे. रम्य कल्पनाओथी तेमनी काव्यपंक्तिओ दिपी ऊठे छे. अहिंसाने साचा स्वरूपमां जीवनमां उतारनार जैन भेखधारीमां जे मृदुता अने मार्दवनी आशा राखी शकाय ते मृदुता अने मार्दव तेमनी