________________
१९५
पडशे अने क्रियावडे आत्मानुं रूपांतर थाय छे, एम मानीए तो आत्मानी आवृत्ति अंगीकार करवी पडशे. आवृत्ति अंगीकार करीए तो संसार विषयक हजारो कृत्यरूप हेतुवडे हजारो रूप बदलाशे. त्यारे पूर्व पूर्वनुं रूप अनात्मा अने उत्तर उत्तरक्रियाजन्य रूप आत्मा मानवो पडशे, अने एम कर्याथी छेवटे अनवस्था दोष प्राप्त थशे ॥ ९२ ॥ नये तेनेह नो कर्त्ता किं त्वात्मा शुद्धभावभृत् ॥
उपचारानु लोकेष्ठ तत्कर्तृत्वमपीष्यते ॥ ९३ ॥ उत्पत्तिमात्रं धर्माणां विशेषग्राहिणो जगुः ॥ अव्यक्तिरावृत्तेस्तेषां नाभावादिति का प्रमा? ॥१४॥
अर्थः- ते माटे आ नयने विषे कापणुं नथी, केमके आत्मा शुद्ध भावनो धरनार छे अने लोकमां उपचारथी तेनुं कर्त्तापकहे छे ॥ ९३ ॥ विशेषग्राही जे ज्ञानी पुरुषो छे ते पूर्वोक्त रीते आत्माने क्रियासिद्ध मानता नथी, किंतु आत्माना धर्मोनी उत्पत्ति माने छे. अहीं कोइने शंका थशे के, जेम आत्मा अव्यक्त छे तेम आत्माना धर्म पण अव्यक्त छे; तो ज्यारे आत्मानी उत्पत्ति मानता नथी त्यारे तेना धर्मनी उत्पत्ति पण केम मनाय ? तेनुं समाधान ए के, केटली एक अव्यक्त वस्तुओ आकाशनी पेठे जेमनी तेम रहे छे अने केटली एक रूपांतरने पामे छे. आत्मा शाश्वता व्यक्त छे अने तेना धर्म अशाश्वता व्यक्त छे, माटे तेओनी आवृत्ति थाय छे केमके जेम आत्मानी अनावृत्तिमा घणां प्रमाणो छे, तेम आत्माना धर्मनी आवृत्ति न थवामां कोइ प्रमाण नथी; तेथी आत्मानी पुनरावृत्ति थती नथी पण आत्माना धर्मोनी पुनरावृत्ति थाय छे, एवं सिद्ध थयुं ।।९४॥