________________
etetetetutetet octetztetetetetstetrtetetrtetutetat tetetetrtetetatatatatetetztetetetetatatatatatatatatatatatat
yottotottot.t.totrttutotrt.titutet tatutitutitutetitutirtatutika
दशे दिशाएथी चतुर्विध संघ आगळ्थी संकेत प्रमाणे तेने मू. रिपद आपवा भेगो मळयो, (श्री सत्यविजय ) पोताने मुरिपद आपवा माटे आ संघने जुदी जुदी जातना महोत्सव करता जोइ अने वैराग्यवाल पोतानुं चित्त संस्कारित थयेलं होवाथी शासन. मां प्रायःशिथिलपणुं देखी ( श्री विजयसिंह ) मूरि पासे विनय अने वैराग्यथी पोताना मननी वात प्रकाशित करी के 'हे स्वामिन् । मारे सूरि पदवी लेवी नथी. मारी इच्छा तो क्रिया उद्धार करवा
नी छे तो ते करीश.'-त्यारे सरिए कां के "आ गादी-गच्छगा* दी तमारे शिरे छे अने तमारे वश तमारी आज्ञा नीचे सौ मुनिप३ रिवार छे. आम कही ते सरिवर स्वर्ग सिधाच्या, अने तेमणे कहेलं
कथमसंघनेमुणावतांसत्यविजयपन्यासनीआज्ञामुनिगणमांप्रवर्ती. ३ ___ श्री सत्यविजयजीए संघनी साथे पोताने हाथे रही विजयप्रभने मूरिपदपर स्थाप्या, अने गच्छनिष्ठा गखी उग्रविहार करी क्रियोडारथी सवेगनो सत्य गुण व्याप्त कॉ. जेवी रीते छेटेथी। * ध्वजा देखीने लोको चैत्यजिनालय होवु जोइए, एवं अनुमान करी हाथ जोडे छे-वंदना करे छे, तेवीज रीते सत्यविजय गणिए ।
रंगित-रंगेला (पीत) वस्त्र अंगीकार करेला होवाथी नेने तेमज ते. | ना परिवारना साधुओने ते वस्त्रो उपरथी तेओ खरा संवेगी होवा जोइए एम अनुमान करी लोको तेमने वंदना करे छे आ श्री स. त्यविजयजी एवा प्रभावक हता के तेनी समक्ष मूरि ( श्री विजयप्रभमूरि ), पाठको उभा रहेता हता-मान आपता हता, अने तेना पक्षमां-क्रियोद्धारना पक्षमां वाचक श्री जश (यशोविजयजी) हता.
सिद्धांतमां ए वातनी साक्षी पूरे छे के संवेगी मुनि, निर्वेदी । गृहस्थ, अने संवेगपक्षी ( संवेगीने अनुमोदनारा )-आ त्रण शि.
वमार्ग लइ शकनारा छे; परंतु ( कलियुगनुं ) माहात्म्य कंइ ओर छे ! जुओ ? आर्यसुहस्ति पोते सरि हता छतां, आर्य महागिरि
**
* ************
Aletet tet tetet etetrtetetattetetetztetettetetetetetetetstetstat
tntetet
tutatutet.itatutatutetatutetatute