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तस्यबिन्दुः
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२५६ व्यवहारनये मिध्यादृष्टि अज्ञानी छे, ते सम्यक्त्व ज्ञाननो प्रतिपद्यमानक होयछे. पण सम्यक्त्व ज्ञान सहित नहि. निश्चयनय कछे के सम्यग्दृष्टि ज्ञानी, सम्यक्त्व अने ज्ञानने अंगीकार करेछे. पण मिथ्यादृष्टि. अज्ञानी अंगीकार करता नथी.
२५७ व्यवहारनयथी मति, श्रुत, अवधि, मनः पर्यवज्ञानी, आभिनिबोधिकना पूर्वप्रतिपन्न होयछे. पण प्रतिपद्यमानक नथी. केबलीने तो उभयाभाव होयछे. कारण के तेमने क्षायोपशमिकज्ञानातीतपणुंछे.
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२५८ मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान अने विभंगज्ञानवाळा तो प्रतिपद्यमान कदाचित् होयछे पण पूर्वप्रतिपन्न नथी. निश्चयनयमतथी मतिश्रुत अवधिज्ञानियो पूर्वप्रतिपन्न नियमथी होयछे प्रतिपद्यमानकनी पण भजना जाणवी. मनः पर्यवज्ञानी तो पूर्वप्रतिपन्न होयछे पण प्रतिपद्यमानक नथी. पूर्व सम्यक्त्वलाभ कालमां प्रतिपन्न यतिज्ञानिने पश्चात् यति अवस्थामां मनःपर्यायज्ञाननो सद्भाव होयछे. मत्यादि अज्ञानवाळाओने उभयाभावज होयछे. ज्ञानिने ज्ञाननी प्रतिपत्ति निश्चयथीछे माटे.