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________________ २) तवबिन्दुः मी पाणीने देखे तो सविष आहारपाणी निर्विषपणे परिणमे विष महा विष देव पण दृष्टिविष लब्धिधारक साधुनुं तेज सही शके नहीं. हवे सातमी रसऋद्धिनुं स्वरूप कहे . रसऋद्धिना छ भेद कछे - १ आस्यविषालब्धि, २ दृष्टिविपालब्धि, ३ क्षीराश्रवीलब्धि, ४ मध्वाश्रवीलब्धि, ५ सर्पिराश्रवी लब्धि, ६ अमृतश्राविलब्धि. १ आस्यविषा लब्धि - प्रकृष्ट तपोबली साधु कोपथी बोले के तुं मरी जा एम बोलतांज जेम विष खाधेल मृत्यु पामे तेम साधुना कोपथी मृत्यु पामे. २ दृष्टिविषालब्धि- तपोबलि साधु क्रोधदृष्टिथी जेने देखे ते जी तत्काल जेम विषवायुथी त्रुक्ष पडे तेम मरी जाय. ३ क्षीरावी लब्धि - खो आहार साधुने कोई आपे पण साधुना हस्तमां क्षीररस समान आहार थाय. कोइ शरीरे क्षीण दुर्बल होय तेने साधु पुष्टिकर वचन कहे तो क्षीणता दुर्बलपशुं नाश पामे. ४ मधुत्र विणी लब्धि- कटुक कषायलो नीरस आहार साधुने दीघो होय. ज्यारे ते आहार साधु हाथमा ले त्यारे मधु
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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