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तत्वविन्दः
करनार, अधर्मशील आचरणवाल, अने ने सदाकाल पाप करता रहेछे. तेओ मता सारा. कारण के एका पापी जीवो सूताथका प्राणीयोने दुख पीडा आपी शकता नथी.
१४७ जे जीवो सदाकाल धर्म करे छे. सर्व जीवोनी दया पाळे छे.
सर्व जीवोने धर्मनो उपदेश आपे छे. ते जीवो जायता सारा जाणवा.
१४८ सप्तभंगीमांनो प्रथमभंग प्रण प्रकारे छे. द्वितीयभंग त्रम प्रकारे
छे. तृतीयभंग तथा चतुर्थभंग दश प्रकारे छे. पंचमना एकत्रो त्रीश. छठाना एकशो त्रीश अने सातमाना पण एकशो त्रीश जाणवा. सर्व मळी ४१६ भेद थया. सम्मतितकमां.
१४९ वे प्रकारना नय छे १ अर्थनय. २ शब्दनय. प्रथम अर्थनयना
त्रण भेद. संग्रह, व्यवहार, रुजुसूत्र. शब्दनयना प्रणः मेव. शब्द, समभिरुढ, एवंभूत. एवं सम्मतितर्कवृत्तौ द्वितीयकांड.
१५० पर्यायना बे भेद छे. अर्थपर्याय अने व्यंजनपोय.अर्यपायने