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________________ - ( ११४ ) Satara. ३५१ श्रीजामां, बारमामां, तथा तेरमामां, एत्रण गुणस्थानकर्मा जीव मरे नहि. ३५२ चक्षुदर्शननो जघन्यतः विरहकाल अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्टतः अन्ततकाल जाणवो. निगोदनी अपेक्षातः ३५३ परमावधिज्ञान, द्रव्यथी परमाणुने साक्षात् देखे. अगुरुलघु पर्यायने देखे. तेमज गुरुलघु पर्यायने पण देखे. परमावधिनो समस्त पुद्गलास्तिकाय विषयछे. क्षेत्रथी परमावधिज्ञान असंख्यात लोकमात्र खंड देखे. कालथी असंख्यात उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी देखे. भावथी परमावधिज्ञान एक आश्री असं ख्यात, संख्यात पर्याय देखे. सामान्यथी वर्ण, गंध रस स्पर्श वाळा चार पर्यायने एक द्रव्यमां जघन्यथी देखे. क्षेत्र अने कालथी रूपिद्रव्यगतछे. वस्तुतः क्षेत्र अने काल अरूपीछे. माटे क्षेत्रकालमा अवधिज्ञाननो विषय नथी. रूपिष्वव धेः. अवधिज्ञाननो विषय रूपद्रव्योमांछे. अनंतद्रव्य समुदाय भेगो करी तो अनंत पर्यायने अवधि ज्ञानी देखे. ३५४ अष्टादशलिपीने संज्ञाक्षर कहेछे. अकारककारादिकने व्यब्ज
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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