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________________ तत्वविता स्थानके जाय. उपशम, क्षयोपशम, अने क्षायिक ए प्रण निश्चय समकितछे. ३१९ तीर्थकर नामकर्म, क्षयोपशम समकिती वा, क्षायिक समकिती जीव, बांधछे. उपशम समकितनो काल अल्पछे माटे तीर्थंकर नामकर्म बंधातुं नथी. तीर्थकर नामकर्म बांधेलंछे एवो क्षयोपशम समकितवाळो जीव पडीने प्रथम गुणस्थानकमां आवे अने त्यां अन्तर्मुहूर्तथी अधिक रहेतो तीर्थकर नामकर्मनां दलिक उवेली नाखे अने अंतर्मुहूर्तमा समकित पार्छ पामे तो तीर्थकर ...नामकर्मनां दलिक उवेले नहीं.. ३२० अभव्यने दीपक समकित होय. ३२१ आयुष्यनो पूर्वमां बंध करीने क्षायिक समकित पामेलो जीव चार भव करेछे, अथवा त्रण भव करेछे. चार भव करे तो बीजो भव युगलिकनो थाय अने त्रीजो भव देवता वा नारकीनो करे, अने चोथो भव मनुष्यनो करे. क्षायिक समकितनी पहेला असंख्याता वर्षनो आयुष्यनो बंध करे तो मरीने युगलिक थाय. ते विना नहि. संख्यात वर्षनो आयुष्य बंध कर्या पछी कोइ जीव क्षायिक समकित पामे नहीं.
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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