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भारतीय संवतों का इतिहास
१८४४ ई० में बाब की घोषणा से हआ।" अतः इसकी एक शताब्दी २० मार्च, १९४४ ई० को पूरी हुयी। मार्च के महा विषुव से बहाई सम्वत् का नया वर्ष आरम्भ होता है, अत: १९८६ ई० के मार्च महीने में बहाई सम्वत् के १४५ वर्ष पूरे हो चुके हैं और अब १९८६-६० ई० का यह बहाई सम्वत् का १४६वां वर्तमान प्रचलित वर्ष है। ___ बहाई सम्वत् में सौर वर्ष का प्रयोग किया गया है । “पूरे वर्ष को १६ महीनों में बांटा गया है तथा प्रत्येक महीना १६ दिन का होता है तथा प्रत्येक वर्ष को पूरा करने के लिए ४ दिन अतिरिक्त जोड़ दिये जाते हैं। प्रत्येक चार वर्ष बाद लौंद का वर्ष होता है, जिसमें एक अतिरिक्त दिन जोड़ दिया जाता है, प्रत्येक दिन का आरम्भ सूर्यास्त से माना जाता है।" __बहाई कलेण्डर में अतिरिक्त दिनों को जोड़ने की एक विशिष्ट व्यवस्था है, इसमें अन्य दूसरे कलण्डरों की भांति अतिरिक्त दिनों को अन्तिम महीने में न जोड़कर १८वें माह के अन्त में जोड़ा जाता है। "ये अतिरिक्त दिन १८वें व १९वें महीने के बीच जोड़े जाते हैं, जिससे कि इसका (बहाई कलैण्डर का) सौर वर्ष के साथ सामंजस्य किया जा सके । बाब ने महीनों के नाम भगवान के गुणों के आधार पर रखे । १६वां महीना २२ मार्च से आरम्भ होकर २१ मार्च (महा विषुव) को पूरा होता है ।"२
बहाई कलैण्डर में दिन की गणना सूर्यास्त से सूर्यास्त तक की जाती है। यह एक विशिष्ट प्रथा है, भारतीय कलैण्डरों में सूर्यास्त से दिन को आरम्भ करने की प्रथा नहीं है। इस प्रकार की दिन की गणना प्राचीन समय में प्रचलित कलण्डर व्यवस्था के अन्तर्गत थी और इसका प्रचलन इटली में था। सम्भवतः बहाई कलण्डर में यह प्रवृत्ति वहीं से ग्रहण की गयी हो। ___ बहाई कलैण्डर के १६ महीनों के जो नाम होते हैं, वही नाग महीने के १६ दिनों के होते हैं । "प्रत्येक महीने के प्रथम दिन अधिकतर 19 दिन की दावत होती है, लेकिन अपवाद स्वरूप यह किसी और दिन भी होती है।" १६ दिन की दावत का तात्पर्य, १६ दिन में पूरी होने वाली दावत है, अर्थात् प्रत्येक महीने के प्रथम दिन यह होती है और पूरे वर्ष के १६ महीनों में १६ दिन
१. जोहन फरेवी, "ऑल थिंग्स मेड न्यू" नई दिल्ली, ति० अनु०, प० २८० । २. जे० ई० इस्लेमॉ, "बहा उल्लाह एण्ड द न्यू एरा", लन्दन, १६७४, पृ० १६६ । ३. जोहन फरेबी, "ऑल थिंग्स मेड न्यू", नई दिल्ली, ति० अनु०, पृ० २८१ ।