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________________ 10 भारतीय संवतों का इतिहास चन्द्रीय पद्धति ग्रहण की गयी। इस प्रकार के परिवर्तन के कुछ कारण डा० मोहम्मद हमीद उल्लाह ने बताये हैं : (१) रमजान का समय व दुलहिज्जा की तीर्थ यात्रा का समय अलग-अलग ऋतुओं में आता रहे, एक ही मौसम में बारबार न आये । जिससे लोगों को न बहुत अधिक कष्ट हो और न ही लोग बहुत अधिक आराम-तलब हो पायें । (२) इस्लाम पूरे संसार के लिए बनाया गया था, इसलिए विभिन्न जलवायुओं को भी ध्यान में रखा गया। (३) "जकात" जोकि धामिक व बचत सम्बन्धी कर था वह सौर पंचांग का प्रयोग कर ३६ वर्ष में ३६ बार ही लिया जाता था। इसके स्थान पर चन्द्र पंचांग का प्रयोग कर ३६ वर्ष में ३७ बार लिया जाने लगा। (चन्द्रीय वर्ष, सौर वर्ष से १० दिन छोटा होने के कारण ३६ सौर वर्ष ३७ चन्द्र वर्षों के बराबर होते हैं।) __कुल मिलाकर हमीद उल्लाह के दो ही कारण इस्लाम द्वारा चन्द्र पद्धति को अपनाने के लिए दे पाये हैं : लोगों की सुविधा तथा धर्म नेताओं की चालाकी। हजरत मोहम्मद ने काफी सोच-विचार कर अपनी जिन्दगी की आखिरी तीर्थ यात्रा के समय को (जोकि उन्होंने अपनी मृत्यु के चार महीने पहले की) तय किया था, ऐसा डा० हमीद का मत है। मोहम्मद ने भी यह परिवर्तन किन्हीं वैज्ञानिक कारणों से किया होगा, इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। वैसे भी केवल लोगों की सुविधा को ध्यान में रखकर किया गया परिवर्तन स्वीकार्य तब तक नहीं होना चाहिए, जब तक कि उसका वैज्ञानिक आधार न हो । वैसे भी गुलाम मोहम्मद इस बात को स्वीकार ही नहीं करते कि हजरत मोहम्मद ने यह परिवर्तन किया था। उनके विचार से तो हजरत मोहम्मद ने ६ ए० एच० में कुरान में दिये गये सौर कलण्डर को ही प्रख्यापित किया था। भारत में इस्लाम के अनुयायियों के आगमन के बाद इसका प्रचलन हआ, अर्थात् ईसा की ८वीं, 8वीं शताब्दी के बाद । यद्यपि आर० सी० मजूमदार १. मोहम्मद हमीद उल्लाह, “इन्ट्रोडक्शन टू इस्लाम", बेरूत, १९७७, पृ० २३४। २. गुलाम मोहम्मद रफीक, "इस्लाम क्रूसेड फॉर कलेण्डर", पट्टन, १९८१, पृ० ११७ । ३. मार० सी० मजूमदार, 'हर्ष एरा', "आई० एच० क्यू.", १६५१, वोल्यूम २७, पृ० १८७॥
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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