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प्राक्कथन
प्रस्तुत शोध प्रबन्ध भारतीय इतिहास में प्रचलित सम्वतों का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन है । इसमें भारतीय इतिहास का तात्पर्य प्राचीन भारत से भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति १९४७ ई० तक के इतिहास से है तथा स्वतन्त्रता पूर्व जो भारत की सीमायें थीं, उन सभी क्षेत्रों से सम्बन्धित सम्वतों का विवेचन इसके अन्तर्गत हुआ है चाहे अब वे भारत की सीमाओं में हैं या नहीं ।
शताब्दियों का मानवीय इतिहास यह बताता है कि मनुष्य को सदैव ही एक निश्चित तिथि- गणना की आवश्यकता रही है। इस संदर्भ में निरन्तर प्रयास व सुधार होते रहे हैं । विश्व के अनेक स्थानों पर पृथक्-पृथक् गणना-पद्धतियों का विकास हुआ तथा भारत में भी सप्तर्षिकाल, बृहस्पतिकाल, परशुराम चक्र, ग्रह परिवर्ती चक्र, चन्द्रमान, सौरमान व चन्द्र- सौर मान गणना-पद्धतियों का विकास हुआ, असंख्य सम्वतों की स्थापना की गयी तथा दैनिक व्यवहार की सुविधा के लिए अनेक प्रकार के पंचांगों का निर्माण किया गया । यद्यपि गणनापद्धति, सम्वत् व पंचांग समय नापने के ही साधन हैं, परन्तु उनमें थोड़ा-थोड़ा अन्तर है तथा प्रस्तुत प्रबन्ध में उनमें से प्रत्येक शब्द का अपना निजी अर्थ रखता है | अतः इनके अर्थ का समझना आवश्यक है ।
गणना-पद्धति के अन्तर्गत समय मापने की छोटी-बड़ी इकाइयों का निर्धारण व इन इकाइयों के लिए ग्रहों, नक्षत्रों, चन्द्र, सूर्य की चालों का अध्ययन आता है । इस कार्य को खगोलशास्त्रियों व पंचांग निर्माताओं द्वारा किया जाता है ।
इस प्रकार निर्धारित की गयी गणना-पद्धति को आधार मानते हुए, किसी भी स्मरणीय घटना से वर्षों की गिनती आरम्भ कर देना तथा इस गणना को एक नाम दे देना सम्वत् कहलाता है ।
न केवल भारत में वरन् विश्व भर में गणना-पद्धति के निर्माता व उसको विकसित करने वाले व्यक्ति व सम्वत् आरम्भ करने वाले व्यक्ति अलग-अलग हैं । जैसे कि भारतीय गणना-पद्धति का विकास वैदिक युग में हुआ व वेदों में इसका उल्लेख है । इसके बाद सिद्धान्त ज्योतिष का विकास हुआ, इसके बाद इस्लाम के अनुयायियों के भारत आगमन के साथ भारतीय ज्योतिष पर इस्लामी