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________________ धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत् उद्देश्य से अनेक सम्प्रदायों व धर्म ग्रन्थों में इसका उल्लेख हुआ है, धर्म ग्रन्थों (हिन्दू) में ऐसी गणना पद्धति को सृष्टि सम्वत् का नाम दे दिया गया है । सृष्टि सम्वत् का एक मुख्य उद्देश्य हिन्दू गणना पद्धति की प्राचीनता को दर्शाना भी है, जैसा कि अनेक धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वतों का रहा है । सृष्टि सम्वत् की उपयोगिता धर्म ग्रन्थों, धर्म चरित्रों व धर्म नेताओं से सम्बन्धित घटनाओं के समय को आंकने में रही हैं तथा हिन्दू धर्म साहित्य में इस सम्वत् को पर्याप्त स्थान मिला है । सृष्टि सम्वत् अब भी हिन्दू धार्मिक अनुष्ठानों तथा पंचांग निर्माण के लिए प्रयुक्त हो रहा है। ___ यह सम्वत् कल्पना पर अधिक निर्भर है क्योंकि सृष्टि के निर्माण का कोई साक्षी नहीं है । सृष्टि निर्माण के बाद ही, उस पर भी मनुष्य का आदिम अवस्था से ऊपर उठकर सुसंस्कृत होने के पश्चात् ही सृष्टि की निर्माण तिथि तथा उससे सम्बन्धित अन्य घटनाओं को तिथ्यांकित करने का प्रयास किया गया । कालयवन सम्वत् कालयवन राक्षस के नाम से इस सम्वत् का नाम कालयवन सम्वत् पड़ा है। इस सम्वत् के संदर्भ में दो साक्ष्य उपलब्ध होते हैं-प्रथम मेगस्थनीज का लेख तथा दूसरा अलबेरूनी का भारतीय संवतों संदर्भ में वर्णन । मेगस्थनीज के लेख जिन्हें उसके देशवासियों ने सुरक्षित रखा, के आधार पर पंडित भगवद् दत्त ने कालयवन सम्वत् का आरम्भ त्रेता युग से बताया है। "यवन शब्द डायोनोसियस अथवा बेकस दानवासुर विप्रचित का विकृत रूप है। उसके बाद सुरकुलेश विष्णु हुआ। विष्णु विप्रचित्ति से १५ स्थान पश्चात् है । बारह भ्राताओं में वह सबसे कनिष्ठ था। ११ स्थान इन भ्राताओं के और ४ स्थान अन्य, इस प्रकार विप्रचित्ति १५ स्थान पहले था। विप्रचित्ति दनु का पुत्र था, अतः वह दानवासुर कहलाया। विप्रचित्ति त्रेतायुग के आरम्भ में था, उससे लेकर भारत युद्ध तक १०० राजा थे। भारत युद्ध से रिपुंजय तक २२ राजा, तत्पश्चात् ५ प्रद्योत राजा, तदन्तर १० शैशुनाग राजा, तदन्दर ६ नन्द हुये । ये सब १४६ बनें । सम्भव है मगध के राजाओं की जो पुरानी गणना हो, उसमें कुछ अन्तर हो । तथापि इतनी बात ठीक है कि त्रेता के आरम्भ से अर्थात् विप्रचित्ति के काल से नन्दों के अन्त तक ६४५१ वर्ष अवश्य बीत चुके थे। यह वर्ष संख्या मेगस्थनीज ने भारत के राजवृत्तों से ली। पुराणों के तुषारों अथवा देव पुत्रों के राज्य का एक वर्षमान ७००० वर्ष का है। यह वर्षमान त्रता के आरम्भ से गिना गया प्रतीत होता है।"' अलबेरूनी के वर्णन से भी १. भगवद्दत्त, 'भारतवर्ष का वृहद इतिहास', नई दिल्ली, १६५०, पृ० १६० ।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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