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________________ २०६ भारतीय संवतों का इतिहास उपलब्ध हों। ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिये गये । इस कार्य के लिए एन० सी० लाहरी तथा सी० बी० वैद्य को नियुक्त किया गया, जिन्होंने पांच वर्ष अर्थात् १६५४-५५ से १९५८-५९ ई० (शक सम्वत १८७६ से १८८०) तक के लिए प्रयोगात्मक भारतीय राष्ट्रीय कलेण्डर तैयार किया। दूसरी बैठक ८ मार्च, १९५४ को सी० सी० एस० आई० आर० बिल्डिंग, नई दिल्ली में हुयी। इस बैठक में सुधरा पंचांग बनाने के लिए पद्धति पर विस्तार से विचार विमर्श किया गया। इसमें चैत्र को वर्ष का प्रथम माह मानने तथा महीनों की लम्बाई आदि के सम्बन्ध में विचार किया गया। इस बैठक में यह भी प्रस्ताव रखा गया कि सम्वत् का लौंद वर्ष ग्रिगेरियन पंचांग के लौंद वर्ष से मेल खाना चाहिए। सितम्बर, १९५४ में कलेण्डर सुधार समिति की तीसरी अन्तिम निर्णायक बैठक में समिति द्वारा यह सिफारिश की गयी कि "राष्ट्र के विभिन्न प्रान्तों में विभिन्न पंचांगों का प्रयोग हो रहा है, जो परस्पर भिन्न है। अतः एक राष्ट्रीय पंचांग समान रूप से सभी राज्यों में नागरिक तथा धार्मिक कार्यों के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए, जहां तक सम्भव हो क्षेत्रीय कार्यों के लिए भी इसका प्रयोग किया जाना चाहिए। इस बैठक में भारतीय राष्ट्रीय पंचांग का स्वरूप निर्धारित कर दिया गया। समिति की राष्ट्रीय पंचांग के संबन्ध में कुछ प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार थीं : (१) सुधरे राष्ट्रीय पंचांग में शक सम्वत का प्रयोग करना चाहिए । (२) वर्ष का आरम्भ महाविषुव अर्थात् २१ मार्च (रात दिन बराबर होने का समय) से होना चाहिये। (३) साधारण वर्ष ३६५ दिन तथा लौंद का वर्ष ३६६ दिन का हो । शक सम्वत के प्रचलित वर्ष में ७८ जोड़ने पर यदि ४ से पूर्ण बंट जाये तब लौंद का वर्ष होगा, लेकिन शताब्दियों को ४०० से बांटने पर पूर्ण बंट जाये, तब ही लौंद का वर्ष होगा। (४) चैत्र, वर्ष का प्रथम माह होगा तथा अन्य महीनों की लम्बाई इस प्रकार होगी: चैत्र ३० दिन वैशाख ३१ दिन १. "रिपोर्ट आफ द कलण्डर रिफोमं कमेटी", दिल्ली, १९५५, पृ० ६ ।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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