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________________ भारत में सम्वतों की अधिक संख्या की उत्पत्ति के कारण १६५ सम्वतों में एक भी राष्ट्रीय संवत् होने की विशिष्टतायें नहीं रखता । तिथिक्रम से इन सम्वतों को इस प्रकार परखा जा सकता है : सर्वप्रथम सृष्टि सम्वत् है, जिसका आरम्भ सृष्टि के आरम्भ के साथ जोड़ दिया गया और सृष्टि का आरम्भ स्वयं विवादास्पद तथ्य है जिसके संदर्भ में साहित्यिक, भौगोलिक व धार्मिक साक्ष्यों से प्राप्त तिथियों में करोड़ों वर्षों का अन्तर मिलता है । इसके व्यतीत वर्षों की विशाल संख्या ने इसे अव्यवहारिक बना दिया है और आज मात्र हिन्दू धर्म पंचांगों में ही इसका उल्लेख होता है । अतः ऐसे संवत् को जिनके वर्तमान समय की संख्या को याद रखना कलीष्ट हो, राष्ट्रीय नहीं माना जा सकता । हिन्दू धर्म से ही सम्बन्धित दूसरा संवत् कलि संवत् है जो अपनी गणनापद्धति की सुगमता के कारण हजारों वर्षों से प्रचलन में है तथा इसका आरम्भ भी खगोलशास्त्र की गहरी शोधों व नक्षत्रों के मिलन की महत्वपूर्ण खगोलशास्त्रीय घटना से हुआ है किन्तु इसकी इकाईयां अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पुरानी पड़ चुकी हैं। आधुनिक समय में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समय की गणना के मापकों के साथ इसका सामंजस्य नहीं किया गया है । अतः इसको राष्ट्रीय संवत् मानें तब पूरी ही पंचांग व्यवस्था नयी घड़ियों के निर्माण, नई तरह की वेधशालाओं का निर्माण करना होगा जो बहुत खर्चीला व कठिन कार्य है । इसके पश्चात् बुद्ध निर्वाण व महावीर निर्वाण संवतों को लेते हैं । धर्मप्रर्वत्तकों के नाम पर आरंभ होने तथा उनकी जीवन की घटनाओं से सम्बन्धित होने के कारण इन संवतों का राष्ट्रीय प्रसार न हो पाया । मात्र इन सम्प्रदायों के अनुयायियों ने ही, वह भी सिर्फ धार्मिक उद्देश्यों के लिए इनका प्रयोग किया | साथ ही इन संवतों के लिए कोई निश्चित व पूर्व गणना पद्धति से पृथक गणना पद्धति भी आरंभ नहीं की गई, अतः इनको राष्ट्रीय संवत् का स्तर प्राप्त होना संभव नहीं । भारतीय इतिहास में विक्रम सम्वत् भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है । साधारण गणना के अनुसार विक्रम संवत् की स्थापना ५७ ई० पूर्व से आरम्भ होती है । आरम्भ में कृत फिर मालव इसके बाद विक्रम संवत् के नाम से इस संवत्, को जाना गया । प्राचीन काल में इस संवत् का प्रयोग दक्षिणी-पूर्वी राजपूताना, मध्य भारत तथा गंगा के उत्तरी मैदान में प्रचलित था । पांचवीं शताब्दी से नवीं शताब्दी तक इस संवत् का प्रयोग मालव नरेश ने किया । इस सम्वत् के साथ विक्रम शब्द धीरे-धीरे नवीं शताब्दी के बाद ही जुड़ा, शक सम्वत् के
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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