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भारत में सम्वतों की अधिक संख्या की उत्पत्ति के कारण...
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भारतीय गणना पद्धति को राष्ट्रीय स्तर पर सुधारने व उसे चलाने के प्रयास नगण्य ही रहे । अतः जो क्षेत्रीय संवत आरम्भ किये गये वे बहुउद्देशीय न बन पाये । कोई धार्मिक, कोई राजनीतिक व कोई साहित्य व अभिलेखों के अंकन तक ही सीमित रह गया। इसका परिणाम यह हुआ कि ऐसे भी अवसर आये जब एक ही शासन ने अलग-अलग उद्देश्यों के लिए कई संवत् चलाये जैसाकि बादशाह अकबर ने धार्मिक कार्यों के लिए इलाही संवत , वित्तीय कार्यों के लिए फसली संवत तथा निजी प्रतिष्ठा के लिए जुलूसी संवतों का आरम्भ किया। इसके अतिरिक्त हिन्दू गणना पद्धति में चन्द्र व सौर का मिश्रित रूप ग्रहण कर लिए जाने के कारण वह पद्धति वैज्ञानिक तो अधिक हो गयी लेकिन उसका व्यावहारिक रूप जटिल हो गया। अतः सरल पद्धति वाले मात्र सौर अथवा मात्र चन्द्रीय गणना वाले संवतों का आरम्भ हुआ। भारतीय जनमानस द्वारा चन्द्रीय हिज्रा व सौर ईसाई संवतों को ग्रहण कर लिए जाने का यही कारण है। फसली संवत् जैसे नये संवतों का प्रादुर्भाव भी इसी जटिलता का परिणाम था।
सूर्यमान, चन्द्रमान व नक्षत्रीय गणना पद्धतियों ने भी नये संवतों को जन्म दिया। राष्ट्र के उत्तरी-दक्षिणी, पूर्वी व पश्चिमी क्षेत्रों में पंचांग-निर्माताओं ने सयंमान, चन्द्रमान व नक्षत्रीय पद्धतियों को कम व अधिक महत्व दिया । जिस कारण किसी क्षेत्र के लोग एक पद्धति से व दूसरे क्षेत्र के लोग दूसरी पद्धति से व तीसरे क्षेत्र के लोग तीसरी पद्धति से परिचित हुए। और वे अपने-अपने गणना के तरीकों को दूसरों से एकदम भिन्न महसूस करने लगे । इस प्रवृत्ति के मूल में मुख्य कारण राष्ट्रीय स्तर पर एक गणना पद्धति का तय न हो पाना था। यदि राष्ट्रीय स्तर पर इन तीनों पद्धतियों की गणना कर एक वैज्ञानिक पद्धति तय कर ली जाती तब बहुत से क्षेत्रीय संवतों की संभावना कम हो सकती थी।
भारत में प्रचलित अधिकांश संवतों को नाम नया नाम देने का ही कार्य किया गया। इनकी गणना पद्धति को किसी भी तरह सुधारने का प्रयास नहीं किया गया। अत: जनता पूर्व प्रचलित गणना पद्धति का प्रयोग करती रही । नये संवत् के प्रति उसमें कोई आकर्षण उत्पन्न नहीं हुआ, जिससे आरम्भ हुआ नया संवत् शीघ्र ही अपने आरम्भकर्ता के अन्त के साथ ही समाप्त हो गया । पुनः उसी क्षेत्र में नये संवत् का प्रादुर्भाव हुआ। यदि पूर्व प्रचलित संवत् को जनता ग्रहण कर लेती तब सम्भव था कि इतनी शीघ्रता से नये-नये संवतों का प्रचलन न किया जाता।