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विभिन्न सम्वतों का पारस्परिक सम्बन्ध व वर्तमान अवस्था
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भारत में आदिकाल से भारतीय स्वतन्त्रता तक आरम्भ हुए बहुत से सम्वतों का उल्लेख अध्याय दो व तीन में किया गया है । परन्तु अनेक कारणों से इनमें से बहुत से सम्वत् अब प्रचलन में नहीं हैं, लुप्त हो गये हैं । कुछ प्रमुख सम्वत् ही वर्तमान समय में प्रचलन में हैं, इन वर्तमान प्रचलित सम्वतों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है ।
वर्तमान समय में प्रचलित सम्वत्
वर्तमान समय में भारत में अधिकांश सम्प्रदायों के अपने निजी सम्वत् हैं । एक ही सम्प्रदाय द्वारा अनेक सम्वतों के प्रयोग की प्रथा भी प्रचलित है । एक ही सम्वत के पृथक-पृथक रूप भी प्रचलित हैं । अनेक क्षेत्रीय सम्वतों का भी प्रयोग किया जाता है । इस प्रकार भारत में अनेक सम्वतों का प्रयोग आज भी हो रहा है ।
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भारत में वर्तमान समय में प्रचलित सम्वतों में तिथिक्रम से सर्वप्रथम सृष्टि सम्वत का नाम आता है । सृष्टि सम्वत् में सृष्टि के निर्माण से वर्तमान समय तक व्यतीत वर्षों की गणना की जाती है । आर्य समाजी धार्मिक कार्यों में इसका प्रयोग करते हैं तथा इस सम्प्रदाय से सम्बन्धित पुस्तकों व पत्र-पत्रिकाओं आदि पर सृष्टि सम्वत लिखा जाता है । हिन्दू धर्म पंचांगों पर भी इसका अंकन रहता है । सृष्टि सम्वत् के बाद कृष्ण सम्वत् का नम्बर आता है । यह हिन्दुओं का धार्मिक सम्वत है तथा पंचांगों पर इसका अंकन रहता है । कलि सम्वत की गणना भी भारत के प्राचीन सम्वतों में की जाती है । इसका आरम्भ ३१०२ ई० पूर्व से माना जाता है । वस्तुतः अधिकांश भारतीय सम्वतों का यही आधार है । "इसका प्रयोग खगोलशास्त्रियों द्वारा किया गया, इसका लिखित रूप १००० ई० पूर्व से मिलता है ।"" प्रतिपल, विपल, पल, घटि, मुहूर्त आदि इसकी गणना की इकाईयाँ हैं । बाद में आरम्भ होने वाले सम्वतों में इसी पद्धति को आधार बनाया गया तथा आज भी हिन्दू ज्योतिषियों व पंचांग निर्माताओं द्वारा कलि सम्वत् का प्रयोग होता है । "कलि सम्वत ५०६० का का प्रारम्भ चैत्र २५ से हुआ है जो १५ अप्रैल, सन् १९८६ ई० के समान है।
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१. "इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका", वोल्यूम - तृतीय, १६६७, टोक्यो (जापान), पृ० ६०७ ।
२. भारत सरकार, "राष्ट्रीय पंचांग", नई दिल्ली, १९८६-८७, भूमिका ।