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________________ १७६ भारतीय संवतों का इतिहास भारतीय संवतों की एक मुख्य समानता उनका समान गणना पद्धति पर आधारित होना है। भारतीय संवतों में गणना के लिए नक्षत्र पद्धति, चन्द्रमान, सौर मान व चन्द्रसौर मान की मिश्रित पद्धति को अपनाया गया ।। जब किसी नक्षत्र विशेष अथवा तारों के समूह के एक निश्चित अवधि वाले चक्र को समय-गणना के लिए अपनाया जाता है तो वह नक्षत्र पद्धति कहलाती है। इसके अन्तर्गत बृहस्पतिमान (१२ वर्षीय चक्र व ६० वर्षीय चक्र) सप्तर्षि चक्र व परशुराम का चक्र पद्धतियां आती हैं। बहस्पति चक्र व सप्तर्षि चक्र (लोकिक संवत् के रूप में काश्मीर में) अब भी भारत में प्रचलित हैं। जिन संवतों में वर्ष व महीनों की लम्बाई चन्द्र-चक्र के आधार पर निर्धारित की जाती है वे चन्द्रीय पंचांग अथवा संवत् कहलाते हैं। भारत में प्रचलित विक्रम व हिजरी संवत इसी पद्धति आधारित हैं। इस पद्धति में "वर्ष में १२ चन्द्रमास होते हैं जो क्रमश: ३० व २६ दिन के होते हैं। अतः साधारण वर्ष ३५४ दिन का होता है। यह ३० वर्षीय चक्र है तथा इसमें २, ५, ७, १०, १३, १६, १८, २१, २४, २६ व २६वां वर्ष लौंद के होते हैं जिनमें अन्तिम महीना २६ के स्थान पर ३० दिन का होता है तथा वर्ष ३५५ दिन का होता है।" इस प्रकार प्रत्येक ३० महीने बाद इस पद्धति में एक माह लौंद का होता है। __ जिन संवतों में वर्ष व महीनों की लम्बाई सूर्य-चक्र पर निश्चित की जाती है वह सौर गणना वाले संवत् कहे जाते हैं । सूर्य १२ राशियों का पूरा एक चक्र करीब ३६५ दिन में पूरा करता है। इसी अवधि को वर्ष की लम्बाई माना जाता है तथा इसको १२ सौर माहों में बांटा जाता है । "सूर्य वर्ष की सही लम्बाई ३६५.२५८७५६ दिन है।" तथा "सूर्य सिद्धान्त में महीने के दिनों की संख्या २६ से ३२ तक हो सकती है।" "चन्द्र वर्ष सौर वर्ष से १०.८६१७०१ दिन छोटा है । इस प्रकार सौर वर्ष से लगभग ११ दिन प्रति वर्ष पीछे रह जाता १. एलग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक ऑफ इण्डियन एराज", वाराणसी, १६७६, २. "रिपोर्ट ऑफ द कलेण्डर रिफोर्म कमेटी", दिल्ली, १९५५, पृ० २४६ । ३. वही, भूमिका। ४. वही, पृ० २४६ ।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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