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काल गणना का संक्षिप्त इतिहास, इकाईयां व विभिन्न चक्र
दिनों की संख्या आदि किस प्रकार थी यह ज्ञात नहीं है। इन लेखों में ग्रीष्म, वर्षा व हेमंत तीन ही ऋतुओं का उल्लेख है। प्रत्येक ४-४ माह की है। ग्रीस के लोग १८ वर्षीय चक्र का प्रयोग करते थे, आठ वषीय चक्र में तीन लौंद के वर्ष होते थे । इस पंचांग की शुद्धि के लिए ग्रीस के लोगों ने १६ वर्षीय चक्र का भी विकास किया । पूरे ग्रीक साम्राज्य में भी एक समान गणना पद्धति प्रचलित नहीं थी। ईसा की दूसरी सदी के करीब भारतीय खगोलशास्त्रियों द्वारा शक संवत् का प्रयोग किया जाने लगा तथा अधिकांश अभिलेखों की तिथि भी इसी में अंकित की जाने लगी।
पश्चिम में खगोल शास्त्र के क्षेत्र में हुयी नयी खोजों ने भारतीय खगोलशास्त्र को भी प्रभावित किया, ४३२ बी० सी० में मैटन चक्र की खोज हुयी। तीसरी शताब्दी के अन्त तक गणित के आधार पर खगोल शास्त्र का विकास कर लिया गया। ग्रीस में ज्योतिष विज्ञान की प्रगति हुई । इसे ग्रीस व बेबी. लोनिया का खगोल शास्त्र कहा जाता है। इसी पद्धति पर पंचांगों का निर्माण किया गया। भारत में भी कुषाण राजाओं के अभिलेखों में इसी पंचांग का प्रयोग हुआ। परन्तु भारतीय पंचांग व्यवस्था ग्रीस व बेबीलोन की पंचांग व्यवस्था से काफी भिन्न थी तथा भारत में पूर्व प्रचलित पंचवर्षीय चक्र से अधिक सूक्ष्म व त्रुटिरहित थी । इसी को सैद्धान्तिक पंचांग व्यवस्था कहा गया है। यह चन्द्रसौर्य वाला पंचांग था। पाराशर संहिता, कश्यप संहिता, भृगुसंहिता, भागवत् पुराण, दिव्यावदान आदि ग्रन्थों में भारतीय तिथि गणना की पद्धति का उल्लेख मिलता है । पी० सी० सैन के अनुसार सैद्धान्तिक पंचांग की खोज का श्रेय आर्य-भट्ट को जाता है । जबकि अपूर्व कुमार चक्रवर्ती आर्य भट्ट से काफी पहले सैद्धान्तिक पंचांग का प्रचलन मानते है। गुप्त काल में पंचांग निर्माता
१. अपूर्व कुमार चक्रवर्ती, 'इण्डियन कलेन्डरिकल साइंस', कलकत्ता १६७५,
पृ० १६ २. वही, पृ० २० ३. वही, पृ० ३० । 2. Calendarical Science. ५. पी० सी० सैन गुप्त, 'एंशियेंट इण्डियन क्रोनोलॉजी', कलकत्ता, १६४७,
पृ० ३८-३६। ६. अपूर्व कुमार चक्रवर्ती, 'इण्डियन कैलेण्डरिकल साइंस', पृ० ३१ ।