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________________ १४० भारतीय संवतों का इतिहास मागी सम्वत् मागी सम्वत् के विषय में यह अभिधारणा है कि इसका मग जाति के नाम पर पड़ा, किसी व्यक्ति विशेष के नाम से यह सम्बन्धित नहीं है । इस सम्वत् के विषय में भी ओझा का विचार है कि "चिटागांग वालों ने बंगाल में फसली सन् का प्रचार होने से ४५ वर्ष बाद उसको अपनाया हो । इस सन् के मागी कहलाने का ठीक कारण तो ज्ञात नहीं हआ परन्तु ऐसा माना जाता है कि आराकान के राजा ने ई० सम्वत की हवीं शताब्दी में चिटागांग जिला विजय किया था और ईस्वी सम्वत् १६६६ में मुगलों के राज्य में वह मिलाया गया। तब तक वहां पर अराकानियों अर्थात् मगों का अधिकार किसी प्रकार बना रहा था। सम्भव है कि मगों के नाम से यह मगी सन् कहलाया हो।" रोबर्ट सीवल ने मागी सम्वत् को ईसाई सम्बत् के ही समान माना है । डा० त्रिवेद ने ५३८ ई० अथवा ५६० शक सम्वत् मागी सम्वत् के आरम्भ की तिथि दी है । मागी सम्वत् का प्रचलन अराकान व चिटगांग में रहा। इस प्रकार ६३८ ई० सन्, ४५ बंगाली सन्, ५६० शक सम्वत् मागी सम्वत् के आरम्भ का वर्ष माना गया है । ६३८ ई० सन् से आरम्भ होकर कब तक यह प्रचलन में रहा, इसके निश्चित प्रमाण प्राप्त नहीं होते । ओझा के कथन से जिसमें वे कहते : "इसका प्रचार बंगाल के चिटागांग जिले में है ।"५ ऐमा प्रतीत होता है कि ओझा के पुस्तक-लेखन के समय (१९१८ ई. तक) यह प्रचलन में था। मागी सम्वत् में अन्य भारतीय सम्वतों से यह एक पृथक विशेषता है कि इसके आरम्भकर्ता के रूप में किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं लिया गया है, बल्कि यह एक जाति विशेष से ही सम्बन्धित है अर्थात् एक समाज से दूसरे ने इसे ग्रहण किया और इस क्रिया में मात्र सम्वत् का नाम ही बदला है शेष कुछ १. राय बहादुर पण्डित गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन __लिपिमाला", अजमेर, १६१६, पृ० १६३ । २. रोबर्ट सीवल, "इण्डियन कलण्डर", लन्दन, १८६६, पृ० ४५ । ३. डी०एस० त्रिवेद, "इण्डियन क्रोनोलॉजी", बम्बई, १९६३, पृ० ३५ । ४. "रिपोर्ट ऑफ द कलण्डर रिफोर्म कमेटी", दिल्ली, १९५५, पृ० २५८ । ५. हीरा चन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर, १६१८, पृ० १६३ ।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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