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________________ 80 भारतीय संवतों का इतिहास जिसे व्यापक रूप से लोगों ने स्वीकार कर लिया। यह मत निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखते हुए स्वीकार नहीं किया जा सका : प्रथम, पंजाब तथा पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त में प्राप्त पुरातत्वीय प्रमाण दोनों अभिलेखीय व मुद्रा शास्त्रीय, इस बात को सिद्ध करते हैं कि कनिष्क वर्ग के राजाओं को कैडफिसस वर्ग के राजाओं के पूर्व नहीं रखा जा सकता। अतः कनिष्क का राज्यारोहण भी प्रथम सदी ई० पूर्व में नहीं रखा जा सकता। कनिष्क का समय प्रथम ई० सदी का उत्तरार्द्ध माना जाता है । अतः कनिष्क विक्रम सम्वत् का प्रवर्तक नहीं माना जा सकता। द्वितीय, विक्रम सम्वत् में अंकित सभी लेख दक्षिण पूर्वी राजपूताना तथा मध्य भारत में ही पाये गये जहां पर कनिष्क का राज्य नहीं था। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि कनिष्क का समय ५८ ई० पूर्व नहीं अन्यत्र है। स्पष्ट है उसने विक्रम सम्वत् की स्थापना नहीं की जो ५७ ई० पूर्व में आरम्भ हुआ। फ्लीट ने यह मत व्यक्त किया था कि कनिष्क ने विक्रम सम्वत् प्रारम्भ किया था, "किन्तु तक्षशिला में जो पुरातन सामग्री मिली है उससे यह सब निर्विवाद रूप से सिद्ध हो गया है कि कनिष्क का राज्य पहली शती ई० पूर्व नहीं है इसीलिए कनिष्क भी प्रकार से विक्रम सम्वत् का चलाने वाला नहीं हो सकता।"२ फ्लीट के मत का समर्थन कैनेडी, बरनेट तथा लांगबर्थ डेनीज आदि ने किया है। कतिपय विद्वान जैसे वी०ए० स्मिथ, बेडेल और थामस ने इस मत को अस्वीकार किया है। सरजान मार्शल ने जिस मत का प्रतिपादन किया उसके अनुसार ५८-५७ ई० पूर्व में आरम्भ होने वाले सम्वत् को गान्धार के प्रथम शक राजा अज से प्रवर्तित किया। इस मत के सन्दर्भ में कुछ आपत्तियां उठायी गयी हैं : पंजाब से प्राप्त कोई लेख ऐसा नहीं है जिसमें ५७ ई० पूर्व में स्थापित सम्वत् का उल्लेख हो, अज की महानता व कृतियों की कोई भी लोकमान्य परम्परा नहीं है । भारतीय परम्पराओं के अनुसार विक्रम सम्वत् का संस्थापन मालवा में हुआ, पंजाब में नहीं । साथ ही यह भी प्राचीन परम्परा है कि सम्वत् का आरम्भकर्ता शकारि (शकों का शत्रु) था, वह स्वयं शक नहीं था। १. राजबली पाण्डेय द्वारा उद्ध त, "विक्रमादित्य सम्वत् प्रवर्तक", वाराणसी, १६६०, पृ० ४६ । २. ओम प्रकाश द्वारा उद्धृत, "प्राचीन भारत का इतिहास", दिल्ली १९६७, पृ० १६६। ३. राजबली पाण्डेय, "विक्रमादित्य सम्वत् प्रवर्तक", पृ० ५१ ।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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