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________________ वानेके आशय से पाटण (गुजरात) स्थित श्रीहेमचन्द्राचार्य ज्ञानभण्डार से प्राचीनतम ताडपत्रीय हस्तपून प्राप्त करके ११ सर्ग तकके पाहमेद उल्लिखित किए, लेकिन अनुमवसे ज्ञात हुआ कि आ पाठभेद उपलब्ध हो रहे हैं वे श्रीकाधवटे महोदय द्वारा सम्पादित प्राचीन संस्करण में उपलब्ध पाठभेद से प्रायः समान ही है । मुद्रण भी संतोषकारक था उक्त संस्करण का, सो शीघ्रातिशीघ्र मुद्रण ठो सके इसलिए Photo- zetox पद्धति से मुद्रण करवाने का निर्णय हुआ। सन १९८३ में श्रीमनफरा जैनसंघ 4 श्रीवावअनसंघ द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रथम अण्ड(सर्ग १-१०) का प्रकाशन हुआ है, और अब श्रीसांचौरजैनसंघ द्वारा यह दूसर। खण्ड प्रकाशित किया जा रहा है,आ सचमुच बडे आनन्द की बात है। मुद्रण आदि की सुचारु व्यवस्था करके श्री मोहनलाल अमनादास शाह ने अपनी शुनभक्ति का अच्छा परिचय दिया है। महाकाव्य में आये ठुझे विशिष्ट नामों की अकारादि सार्थ सूचि व इन्दों की सूचि परिशिष्ट में दी है। पूज्यपाद आचार्य व श्रीमद्विजय भास्श्वरजी के शियरल मोर १-पार मुनिराज श्री जनधन विजय शिघ्याण ानपंचमी मुनि मुनिचंद्र विजय वि.सं.२०५३ VII
SR No.023412
Book TitleDwayashray Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorAbhaytilak Gani
PublisherWav Jain S M P Sangh
Publication Year1987
Total Pages674
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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