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________________ (श्री विजय भद्र सूरीश्वरेभ्यो नमः) जयउ वीर सच्चउरी मंडण पूज्यपाद मिदि-विनय-भद्रविशाल-ॐकारसूरीश्वरे भ्यो नमः વિજય ૐ કાર સૂરિ Acharya Vijay Omkar soori आशीर्वचन परमाराध्य महामनिषी पूर्वाधार्य भगपन्नों का विपुल दान है यह ग्रन्धराशि ! से ग्रन्थों के पठन-पाठनकी अनवरत परंपरा सदा प्रवाहमान रहे इसलिए आयश्यक है ऐसे ग्रन्योका संशाधन-सम्पादन, पृका. शन एवं पुनः प्रकाशनकी, जो कि अन्धों को सदा प्राप्य बना रस्थे ; स्वाध्यायकी परंपराको अक्षुण्ण बनाये रस्के । कलिकाल सर्वज्ञ आचार्यदेव श्रीमविनय हेमचन्द्र सूरीश्वरजी महारानके व्याश्रयमहाकाव्य (भा.२)का पुन: प्रकाशन कर के श्री सांचोर अन धे.म.पू. संघने 'पुत्थयलिहणं' के शास्त्रबोधित कर्तव्यको सुचारु रूपसे अदा किया है। मुनिप्रवर श्री जिनचन्द्रविनयभी, मुनिश्री, मुनिचन्द्रविजयजी, एवं मुनिश्री भाग्येशविनयमीकी प्रेरणासे प्रकाशित यह अन्धरत्न विद्वानों के पयमें कलिकालसर्वज्ञकी वाणीको अनुगुंजिन करे । यही शुभ कामना | आचार्य विजय ॐकारभि
SR No.023412
Book TitleDwayashray Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorAbhaytilak Gani
PublisherWav Jain S M P Sangh
Publication Year1987
Total Pages674
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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