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________________ अथ पाकस्थाने सहागतपथिकेनाग्नियाचने मत्पार्श्वे मुंदव, नाग्निमर्पये, इत्युक्तौ पथिकेनाक्रोशने, वपुर्वृष्ट्यादिना नापने, प्राणांतेऽप्यकोने स्वदिव्यरूपप्राकृतौ इंजप्रशंसावृत्तोक्तो बनाउत्तरीये विषापहारमणिं निवध्य देवगमेनेष्टं सहदेवादीनां तहतोक्तौ ॥ ४३ ॥ नगरकोनं दृष्ट्वा प्रश्ने पुरुषोत्तमो राजाऽद्याऽहिदष्टपुत्रजीवयितुः राज्यार्धदानपटहं वादयतीत्युक्तौ सहदेवेन बनान्चेसांचनान्माणं वात्वा पटहस्पर्श तजीवने सहदेववचसा ॥४४॥ राज्ञा विमनपार्श्वे आगत्य राज्याज्यर्थने, तेनारंजनियाऽग्रहणे गजारूढस्वगृहनयने सहदेवाय राज्यार्धदाने विमनस्याऽनिच्छतोऽपि श्रेष्टिपदं गृहादि चार्पयत् ॥४॥ ___ पछी रसोइनी जगोए ते साये आवेना पंथीए तेनी पासेयी अग्नि मागते उते, तागे कह्यु के, तुं मारी पासे नोजन कर हं अग्नि आपीश नहीं; ते सांजळी ते पंथिए क्रोध करी शरीर वधारवा आदिकथी तेने बीवरावते उते, तया प्राणांते पण तेने नहीं चलायमान ययेनो जोइ, ते पंथीरूप देवे पोतानुं खरं रूप प्रगट | कयु, तया इंटे करनी तेनी प्रशंसा आदिकनुं वृत्तांत तेने कह्यु, तथा आग्रहथी तेने दुपट्टे फेर दूर करनारु मणि बांधीने देव गये उते, ते वृत्तांत विमझे सहदेव आदिकोने कां ॥४३॥ एटनामां नगरमां कोलाहल यतो जोड़ | प्रख्वाथी माबुम पमयुं के, पुरुषोत्तम राजा आजे सर्प खेसा पोताना पुत्रने जीवामनारने अरथू राज्य आप-18 बांनो पटह वगमावे जे; तेथी सहदेवे वळात्कारे विमझना वस्त्रने मेयी मणि बइ पटहने स्पशी तेने जीवतो कर्यो, तथा सहदेवना वचनयी ॥ ४ ॥ राजा विमा पासे आवी अरधुं राज्य सेवानी प्रार्थना करवा बाग्यो; त्यारे विमले आरंजना जयथी ते नहीं खेवायी, राजा तेने हायीपर चमावी पोताने घेर अा गयो, तया सहदेवने अरधुं राज्य प्रापी, विमळनी इच्छा नहोती, तोपण तेने राजाए शेवनी पदवी तथा घर आदिक प्राप्यु ॥४॥ . श्री उपदेशरत्नाकर
SR No.023410
Book TitleUpdesh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalan Niketan
PublisherLalan Niketan
Publication Year1925
Total Pages406
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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