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________________ आईकुमारनी कथा. योगथी सहेजमां श्रावी मले .” श्राकुमार मुनिए कह्यु. “ हे गोशाल ! तुं जेम तेम बोल नहीं; कारण प्रारब्ध अने पुरुषार्थ ए बन्ने मलवाथी कार्य सिद्धि थाय . जेमके प्रारब्धना योगथी जोजन तो म. ल्यु, पण ते थालीमां रहेढुं जोजन ज्यांसुधी थापणे हाथ चलावीए नही त्यांसुधी मुखमां पेसे नहीं. माटे कांश्क प्रारब्धना योगश्री श्रने कांश्क पुरुषार्थथी एम बन्नेथी कार्य सिद्धि थाय, बे, पण फक्त प्रारब्धथीज कार्यसिकि थाय, एम मिथ्या कदाग्रह न करवो.” कडं ले के"प्रारब्ध अचिंत्य बलवालुं तो पण पुरुषार्थ तेथी पण वधारे बलवान बे. जुलं. श्राकाशमांथी तो पाणी क्यारेक पडे ने पण कुवो खोदवाथी निरंतर मले ." श्रा प्रमाणे कही आकुमार मुनिए गोशालाने बोलतो बंध करी दीधो, तेथी देवता, विद्याधरो अने गंधर्वो तेमनी स्तुति करवा लाग्या. पली जीवदयाना बाजासे करीने ब्रांति पामेला एवा अने हाथीना मांस खानारा हस्ति तापसना थाश्रममां श्राव्या. तेमने ते तापसो कहेवा लाग्या के, “ धान्यरूप अनेक न्हाना जीवो मारवाथी शं? पण एक म्होटो हाथी मास्यो होय तो तेथी घणा दिवस श्राजीवीका चाले; तेथी श्रमे श्रा एक हाथी मास्यो ने अने बीजाने बांधी राख्यो ." तापसो एम कहे जे एटलामां तो पेहेलो बांधेलो हाथी आर्डकुमारने देखीने वीचार करवा लाग्यो के, “था मुनिने हुं वांउं." हाथी एम विचार करे बे, एटलामां तो तेनां सर्व बंधन बूटी गया. पड़ी ते हाथी मुनि तरफ दोड्यो एटले लोको जयथी हाहा शब्द करी जागवा लाग्या, पण बार्डकुमार तो मेरु पर्वतनी पेठे थचल उन्ना रह्या. पडी हाथी श्रा. कुमार मुनिने प्रणाम करी तेमनी पासे उनो रह्यो अने मुनिना चरणनो वारंवार स्पर्श करी बहु हर्ष पाम्यो. एटले सर्व तापसो हर्ष पामी अने आर्डकुमार पासेथी बोध पामी श्री महावीर खामीना समवसरण तरफ चाल्या. ए सर्ववात ज्यारे श्रेणीक राजाए सांजली, त्यारे ते श्रने अजयकुमार, थाईकुमार मुनिपासे आवीने पूबवा लाग्या के, “ हे महर्षे ! तमारा दर्शनथी हाथीनां बंधन बूटयां, ए आश्चर्यने सांजलवाने बुं बु.” राजानां एवां वचन सांजलीने थाऽकुमार मुनिए कह्यु के,
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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