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________________ शीलोपदेशमाला. पड़ी ते प्रत्येकबुद्ध, व्रतनुं पालन करतां एक दीवस वसंतपुर नामना नगरमां थाव्या के जे नगरने विषे धनावदशेनी धनवती नार्यानी कुखे पोताना पूर्वनवनी बंधुमती स्त्री मृत्यु पामीने, श्रीमति नामनी पुत्रीपणे उत्पन्न थर यौवन अवस्थामां आवी हती. ___एक दिवसे ते श्रीमति, पोतानी पांच सात सखी सहित ज्यां नगरनी बहार देवमंदिरने विषे आकुमार मुनि काउस्सग करी उजा हता त्यां मंदिरमा रमवाने माटे श्रावी. पनी ते कुमारी मंदिरना एक एक थांजलाने "श्रा म्हारो पति था म्हारो पति” एम कहीने वरवा लागी. एटलामा श्रीमति पण काउस्सग्ग करीने उन्नेला आईकुमार साधुने थांजलानी ब्रांतिथी “श्रा मारो पति” एम कहीने वस्या. ते वखते देवताए “बहु सारं थयुं! बहु सारं थयु!!” एम गर्जना करीने रत्ननी वृष्टि करी. देवताउँए करेली गर्जनाथी नय पामेली ते श्रीमति, आकुमार मुनिना पगने वलगी रही. पड़ी श्राकुमारे पोताने प्राप्त श्रयेला उपसर्गने देखी पोताना पग बोमावी त्यांथी विहार कीधो, ते वखते श्रीमतिए कह्यु के, “म्हारे था नवमां तमेज पति थजो, बीजो कोई नहीं,” हवे देवताए जे रत्नवृष्टि करी हती तेनो को धणी न दे. खीने राज पुरुषो ज्यारे ते लेवा माटे श्राव्या त्यारे देवताए कह्यु के, “ ए सर्वरत्न श्रमे कन्याने विवाहमां दीधां बे, माटे तमारे ग्रहण करवां नहीं.” देवतानां एवां वचन सांजली राजाना पुरुषो पाना गया. पली श्रीमति ते अव्य लेश्ने पोताना पितानी साथे घेर श्रावी. पबी केटलेक ठेकाणेथी श्रीमतिने माटे विवाहना मागा आव्या; त्यारे श्रीमतिये पिताने कर्वा के, " हे तात ! में जेने पति कह्यो जे ते जो म. लशे तोज ढुं विवाह करीश; नहीं तो नही करूं. कारण लोकमां पण कह्यु के-॥ सकळाल्पंति राजानः, सकृजापंति पंमिताः ॥ सकृत्कन्या प्रदीयंते, त्रीण्येतानि सकृत् सकृत् ॥ राजा एकवार बोले , पंडितो एकवार बोले , कन्या एकवार परणावाय जे. ए त्रण एक एक वार थाय .” एवां वचन सांजली धनावह शेठ पुत्रीने कहेवा लाग्यो के, " हे वछे ! तें जेने पति कहेलो , ते जमरानी पेठे विचरनारा मुनि केम म१ कोइ पण वस्तुने जोइ बोध पामे ते.
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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