SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० शीलोपदेशमाला. थयो, त्यारे प्रधानने बोलावीने पूज्युं. "हे प्रधान ! तमे नाच करवा माटे बोलावेली लीलावती क्यां ग?" प्रधाने कडं. “हे राजन् ! तेना पुराचारने जोश में तेने मंदिरमांथी काढी मूकी बे, तेथी ते बीजा कोश्ना घरमां रात रही हशे.” प्रधाननां एवा वचन सांजली राजा कां पण बोल्यो नही. हवे समय श्राव्ये लीलावतीने सर्व लक्षण संपूर्ण पुत्र थयो. प्रधाने तेने गुप्त रीते सर्व कलानो अभ्यास कराव्यो. पड़ी शुज मुहूर्ते प्रधान पोतानी पुत्रीने तथा तेना पुत्रने साथे तेडी राजसनामां गयो; त्यारे राजाए पूज्युं. “ हे प्रधान ! था स्त्री कोण ? अने था पुत्र कोण बे?" प्रधाने उत्तर आप्यो के, “ हे राजन् ! ते आ म्हारी पुत्री जुवनानंदा तमारी स्त्री अने था म्हारी दीकरीनो दीकरो तमारो पुत्र जे.” प्रधाननां एवां वचन सांजली राजा जेटलामां कां बोलवा जाय , तेटलामां प्रधाने श्रागल लखी राखेली तेनी चेष्टा तथा वचनोनो चोपडो राजाना हाथमां प्राप्यो. राजा ते जुवनानंदानी साथे पोते करेलुं अने बोलेबुं सर्व वांचीने श्राश्चर्य पाम्यो. पड़ी लजा अने हर्षना बांसुए करीने जरा गइ ने आंखो जेनी एवो ते राजा पोताना वृत्तांतने स्मरण करतो मस्तक धूणाववा लाग्यो, अने पोताना पुत्रना सर्व अंग उपर हाथ फेरवी खोलामां बेसारी पुत्रने कहेवा लाग्यो के, “हे पुत्र! था सघj राज्य हारूंज जे. हे पुत्र ! जे महासती त्हारी माताए पुत्रनी प्राप्तिरूप पो. तानी प्रतिज्ञा पूर्ण करवा माटे केवल मश्करीए करीनेज मने थानंद पमाड्यो , ते सर्व में हवे जाण्यु; माटे म्हारी धीरजने, शौर्यने, पराक्रमने अने यशने धिक्कार डे के, जे हुँ स्त्रीनी लीलाए करीने जीताणो डं!!! वली हे प्रधान ! तमारे पण म्हारा तरफथी कांश जय राखवो नहि, कारण के, जेम सूर्य अंधकारनो नाश करे बे, तेम तमारी पुत्री थकी मने बोध मल्यो बे, एम हुँ जाणीश.” पली राजाए वैराग्य पामी पोताना पुत्रने राज्य थापीसारु समीपे दीक्षा ग्रहण करी आत्मसाधन कह्यु.अहो ! श्रावा महा पराक्रमी रिपुमर्दन राजाने पण स्त्रीए पोतानो दास कस्यो, तो पठी बीजा साधारण माणसनी शी वात कदेवी ? इति रिपुमर्दन राजाश्रने जुवनानंदा राणीनी कथा.
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy