SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 422
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१४ शीलोपदेशमाला. शब्दार्थ- (तिहुश्रणपहुणावि के०) त्रण जुवनना अधिपति एवा पण (रावणेण के०) राक्षसोना अधिपति एवा रावणे (हु के०) निश्चय (जीसे के०) जेनुं (रोममित्तंपि के०) एक रुवाडं मात्र पण (नसंचालियं के०) न चलाव्यु. (तीए के०) ते (सीश्राए के०) सीतार्नु (च. रियं के०) चरित्रं (न चितिति के०) नथी आश्चर्यकारी? अर्थात् श्राश्चर्यकारी . ॥ १७ ॥ विशेषार्थ-त्रण जुवननो अधिपति एवो रावण पण जेनुं एक रुवाडं मात्रपण चलावी शक्यो नथी. ते सीतानुं चरित्र शुं श्राश्चर्यकारी नथी? अर्थात् आश्चर्यकारी . महासती सीतानी कथा. जेने विषे रहेनारा सर्वे पुण्यवंत मनुष्यो अनी राजधानीमां पण जवानी श्छा करता नथी एवं मिथिला नामर्नु नगर ले. त्यां इंजना सरखो पराक्रमी अने महायशवंत जनक नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने जेना देहना सौंदर्यथी सर्व स्त्री विदेह (वैराग्यवंत) थर हती एवी विदेहा नामनी स्त्री हती. ते स्त्रीये जेम सारीरीते अभ्यास करेली उत्तम राज्यनीति यशने अने लक्ष्मीने जन्म आपे तेम एक पुत्रने अने एक पुत्रीने साथे जन्म श्राप्यो. तेमांथी पूर्व नवना वैरने लीधे ग. रुड जेम सर्प, हरण करे तेम देवताए तरत जन्मेला ते पुत्रने हरण करी तेजना समूहनी पेठे वैताढ्य पर्वत उपर मूक्यो. त्यांथी पडता एवा ते पुत्रने दक्षिण श्रेणिना रथनुपुर नगरना अधिपति चंद्रशेखर विद्याधरे ग्रहण करीने पुत्ररुप मानी पालन कमु थने तेनुं जामंडल नाम पाडयु. पडी नामंडल नामनो ते पुत्र बालचंजनी पेठे वृद्धि पामवा लाग्यो अने विदेहाये पण पुत्रनुं हरण थवाथी तेनो दीर्घकाल सूधी शोक कस्यो. पड़ी माता पिताए जोडलामा उत्पन्न थयेला पुत्रनुं हरण थवाथी पुत्रीनुं नाम सीता पाडयु; जेथी ते सीताना नामथी प्रसिद्ध थ. वली पुत्रना हरणथी शंका पामेला माता पितादि स्वजनोए पृथ्वीमा डाटी राखेली ते पुत्रीनें “नूसुता" एवं पण नाम कहेवाय . पली कलाउँए करीने अने वये करीने वृद्धि पामती एवी ते पुत्री युवान् पुरुषोना मनने उन्माद करनारी यौवन श्रवस्थाने पामी; जेथी जनक राजा पुत्रीना वरने अर्थे
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy