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________________ मूलगाथान. ४०३ तने शी रीते श्छे ? कारण के, म्होटी अथवा म्होटाकुलमा उत्पन्न थ. येली बीजी सामान्य स्त्री पण परस्त्रीने विषे आसक्त थयेला पुरुषने श्वती नथी. कयु के अन्यान्यरमणीरक्तश्चक्रवर्त्यपि मा वरः॥ परस्त्रीसंगविरतो, दाखिकोऽपि वरं वरः॥१॥ अर्थ-नवी नवी परस्त्रीने विषे शासक्त एवो चक्रवर्ति पण श्रेष्ठ नथी अने परस्त्रीना संगरहित एवो खेडु पण श्रेष्ठ वर .अर्थात् निर्मल शील पालवाथी मोद प्राप्त थाय .॥ १ ॥ तेज वातनो उपदेश करतां कहेडे. शाश्वतसुखश्रीरम्यां अविघटप्रेमाणं समृद्धिसिद्धिवर्धू सासयसुदसिरिरमं, अविदेडपिम्मं समिद्धिसिद्धिवढुं॥ यदि ईहसे तत् परिहर इतराः तुबमहिलाः जर ईदसि ता परिदर ईयरान तुबमदिलान॥ ए॥ शब्दार्थ-( ज के०) जो ( सासयसुहसिरिरंमं के ) अविनाशी सुखनी संपत्तिए करीने मनोहर श्रने (अविहडपिम्मं के०) निश्चल डे प्रेम जेनो एवी ( समिद्धिसिद्धिवढं के० ) समृद्धिवाली मोक्षलक्ष्मीरूप स्त्रीने (हिसे केस.) श्छे बे, (ता के०) तो ( श्यराज के०) बीजी (तुबमहिला के०) था तु स्त्रीने (परिहर के० ) त्यजी दे. अर्थात् मोदलदमीनी श्छा होय तो निर्मल एवं शीलवत पाल.॥ ए॥ विशेषार्थ-हे प्राणी ! जो तुं अविनाशी सुखनी संपत्तिथी मनोहर अने निश्चल ने प्रेम जेनो एवी समृद्धिवाली मोक्षलक्षिरूप स्त्रीने श्छे बे, तो बीजी श्रा प्रत्यद देखाती एवी तुछ स्त्रीउँने त्याग कर. अर्थात् जो मोदलक्ष्मीनी श्छा होय तो निर्मल एवं शीलवत पाल. ॥ ए॥ .. कामथी पीडा पामता पुरुषोने पुःखज थायडे, ते कहे. रम्याः रमणीः दृष्ट्वा विविधाः कामतप्तस्य रेम्मान रमणीन, दैहुं विविहान कामतवियस्स॥ कुत्र सुखं तव नविष्यति जणितं इदं आगमेऽपि यतः कब सुदं तुद दोदी, नैणियमिणे आगमेवि जनाए३॥
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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