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________________ गडदत्तनी कथा. ३५ इत्यादि मुनिना मुखथी सर्व वृत्तांत सांजलीने राजकुमारे कधुं." दे प्रभु ! तमे या सर्व वृत्तांत म्हारुंज कयुं. ते राजकुमार हुं अने ते म्हारी प्रिया हती. हे मुनि ! जेवी रीते बहारना अंधकाररूप शत्रुनो नाश करवा मां सूर्य समर्थ बे तेवी रीते म्हारा अंदरना मोहरूप शत्रुनो कय करवामां तमे समर्थ बो. वली विरोधना दंजधी या पांच चोरो म्हारा बंधु थयेला ab, जेमणे म्हारा प्राणोनुं रक्षण करेलुं बे. या अरण्यने धन्य बे के, ज्यां मने जिनेश्वरजगवान् देव, तत्वज्ञानाने सकुरु ए रूप ऋण रत्न प्राप्त थयां अनर्थना समुद्ररूप था संसारने सर्व प्रकारे धिक्कार था ! धिक्कार था !! अने म्हारे चारण मुनिना चरणनुं शरण हो. " एम कहीने ते राजकुमार गडदत्त मुनिने वंदना करीने सर्व माणसो सहित पोताने घेर गयो ने पढी तेथे कमलसेना सहित दीक्षा धारण करी. स्त्रीना वैराग्यथी वृद्धि पामी बे श्रद्धा जेनी एवो ते राजकुमार दी - र्घकाल सूधी चारित्रनी श्राराधन करी ने कर्मोंने निर्मूल करी मोहना सुखने पाम्यो. इति अगदत्त कुमारनी कथा. वे स्त्रीउनो विश्वास करनारने दुर्दशा प्राप्त थाय बे, ते कहे बे. मुखमधुरासु निर्घृण मानुषनारीषु मुग्ध विश्वासं मुहमहुरासु निग्धि. माणुसनारीसु भुंइ वीसा ॥ यान् लप्स्यसे अवश्यं प्रदेशिराज इव विषमदशां जंतो दसि वस्सं. पए सिराज विसंमदसं ॥ ८७ ॥ शब्दार्थ - ( निग्धिण के० ) हे निर्दय ! ( मुद्ध के० ) हे मूर्ख ! ( मुहमुहरासु के० ) फक्त रंजने विषे मधुर एवी ( माणुसनारीसु के० ) मानुष्य जातिनी स्त्रीने विषे ( वीसासं के० ) विश्वासने (जंतो के० ) पामतो वो तूं ( वस्सं के० ) निश्चे ( पए सिराज के० ) प्रदेशी राजानी पेठे ( विसमदसं के० ) विषम दशाने ( लह सि के ० . ) पामीश ॥ ८७ ॥ विशेषार्थ - हे निर्दय ! हे मूर्ख ! जो तुं फक्त शरुवातमां मधुर पवी
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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