SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ शीलोपदेशमाला मिलां के०) मगरनी दाढनी पेठे वांका हृदयवाली (परिकलि के०) जाणीने (विमलबुद्धिणो के०) निरमल बुद्धिवाला अने (धीरा के०) धीरजवंत एवा (धन्ना के०) केटलाक पुण्यवंत पुरुषो (विरत्तचित्ता के०) वैराग्यवंत चित्तवाला (हवंति के० ) थाय जे. (जह के०) जेम (अगडदत्ताई के०) अगडदत्त विगेरे थया रे तेम. ॥ ६ ॥ विशेषार्थ- रूपादिकथी मनोहर एवी पण स्त्रीने मगरनी दाढनी पेठे वांका हृदयवाली पुराचरणी जाणीने निरमल बुद्धिवाला श्रने मेरुपर्वतना सरखा धीरजवंत केटलाक पुण्यवंत पुरुषो अगडदत्त, शालिजज अने जंबूखामी विगेरेनी पेठे वैराग्यवंत थाय . ॥ ६ ॥ अगडदत्तनी कथा. जेनी संपत्ति जोश्ने देवताउँ पण लक्ष्मीथी स्वर्गने बेतरायेधुं मानता हता एबुं शंखपुर नामर्नु नगर . त्यां जेना हाथरूप कमलने विषे ब्रमरनी पंक्तिना सरखं खड्ग शोजतुं हतुं एवो अने महा रूपवंत सुंदर नामनोराजा राज्य करतो हतो.तेने त्रास पामेला मृगना सरखा नेत्रवाली सुलसा नामनी स्त्री हती के, जे स्त्री गुणोए करिने सारा दंडवाली ध्वजानी पेठे अत्यंत शोजती हती. तेउने संपूर्ण दोषना स्थानरूप अगडदत्त नामनो पुत्र हतो. एक दिवसे राजा सनामां बेगे हतो, ते वखते अगडदत्त पण श्रावीने बेठो. एवामां केटलाक नगरवासी जनोए श्रावीने राजाने कडं के, “हे देव ! था तमारो पुत्र अगडदत्त प्रजाने बहु संतापे ; तेथी श्रमे नगरमा रहेवाने असमर्थ बीए." प्रजानां एवां वचन सांजलीने क्रोधथी रातां थयां ने नेत्र जेनां एवा राजाए कह्यु के, “ मनुष्योने वांजीया रहेQ ए घणुंज सारं बे; पण कुर्विनीत पुत्रथी पुत्रवंत कहेवरावq ए सारं नथी. सणवाला पुत्रोथी सामान्य कुल शोजा पामे श्रने कुपुत्रोथी उज्वल कुल कलंकित थाय ." ए प्रकारे राजाए तिरस्कार करेलो कुमार अगडदत्त रात्रीने विष सिंहनी पेठे निर्णय बतो पिताना नगरथी चाल्यो गयो. अनुक्रमे ते वाराणसी नगरीये पहोच्यो अने त्यां इंथी पण अधिक लक्ष्मीवंत पुरुषोनी संपत्ति जोवा लाग्यो. पड़ी अनुक्रमे फरता फरता ते सरल मनवालो राजकुमार विद्यार्थिउने जणवानी
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy