SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नूपुरपंडितानी कथा. ३६१ थएलो महावत 'नमो अरिहंताणं' ए शब्दनो उच्चार करतां करतां मृत्यु पाम्यो. ते धर्मनुं तत्व जाणतो न होतो, पण केवल नवकारना प्रजावथी श्रने अंत समये अकामनिर्जराना योगथी व्यंतर देवता थयो. हवे उराचारिणी राणी पण त्यांथी चोरनी साथे श्रागल चालवा लागी; एवामां रस्ते पाणीना पूरथी जयंकर एक नदी श्रावी. ते जोश्ने चोरे राणीने कयु के, “ हे प्रिये ! वस्त्र अने अलंकारो सहित तने एकी वखते सामे पार लइ जवाने हुँ शक्तिमान नथी; माटे तुं त्हारां वस्त्र अने श्रलंकारो मने थाप. ते ढुं सामे तीरे मूकी आवीने पड़ी तने सुखेथी लश् जश्श. हुं ज्यां सूधीमां आईं त्यां सूधी तुं निर्जय थश्ने था शरना समूहमां संता रहे. हे प्राणेश्वरी ! हुँ तरतज श्रावीश अने म्हारा पीठ उपर बेसारी गरूडनी पेठे तने त्यां सामे तीरे पहोचाडीश.” पनी म्होटा अपराधथी जाणे दैवेज दंड कस्यो होय नहिंशुं ? एम राणीए पोतानुं सर्व चोरने श्रापी पोते नग्न थश्ने शरना समूहमां बेठी. पड़ी चोर दणमात्रमा सामे पार जश्ने विचार करवा लाग्यो के, “जेणे म्हारा उपरना स्नेहने लीधे पोताना पतिने पण मरावी नाख्यो ते स्त्री मने पण मरावी नाखे ए निःशंसय ." एम विचार करीने ते चोर पाई वालीने जोतो जोतो जाणी पदीनी पेठे उडतो होय नहिंशुं ? एमनाशी जवा लाग्यो. कडंडे के-धूर्त माणस पोतानो स्वार्थ साध्या पली बीजानी अपेक्षा करतो नथी. __ पड़ी नग्न अने गात्रनग्न एवी राणी पोताने बेतरीने नाशी जता एवा चोरने जो उंचा हाथ करी कहेवा लागी. "अरे ! नग्न एवी मने त्याग करीने तुं क्यां नाशी जाय ?" चोरे उत्तर प्राप्यो. "हे पुराचारिणी ! शरना वनमां राक्षसीनी समान नग्न एवी तने एकलीने अने त्हारा कृत्यने जोश हुं जय पामुं बु.” एम कहीने ते चोर मृगनी पेठे क्यांश नाशी गयो भने बन्ने बाजुथी व्रष्ट थएली ते पुराचारिणी तो त्यांज रही. __ हवे महावतनो जीव के जे देवपणाने पाम्यो हतो तेणे अवधि ज्ञानश्री पुराचारिणी एवी राणीने श्रावी स्थितिमा जोश, तेथी ते देवे पोताना पूर्वजन्मनी स्त्रीरूप तेने बोध देवाने माटे मोढामां मांसना ककमावालु शियालनुं रूप धारण कमु.पली नदीने कांठे ज्यां राणी हती त्यां श्रावीने
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy