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________________ ३४४ शीलोपदेशमाला हवे विषयरसनी तृषायी श्रातुर थवामां तपना श्राचरणनुं पण निरक पकड़े बे. श्रमण्यपि खलु विषयरसात् पूर्वजवे द्रौपदी कृतनिदाना समणीव है विसयरसा, पुवनवे दोवेई कय नियाणा || शिवदायकमपि खलु तपः मुधा हारयामास धिक् मोहः सिंवदायगंपि ढुं तवं मुँदा हारिसुं ' है। 'मोहो ॥ ६४ ॥ 0 शब्दार्थ - ( पुवनवे के० ) पूर्वजवने विषे (दु के० ) निश्चे ( कयनिदाना के० ) क बेनियाएं जेणे एवी छाने ( समणीवि के० ) ग्रहण कखुं बे चारित्र जेणे एवीय पण ( दोवइ के० ) द्रौपदी, ते ( विसयरसा ho ) विषयना रसथकी (सिवदायगंपि के० ) मोने आपनारा एवाय पण ( तवं के० ) तपने ( हु के० ) निश्चे ( मुद्दा के० ) फोगट ( इहारिसु के० ) हारी गइ ! ते कारण माटे ( मोहो के० ) मोह ( ही के० ) धिक्कारवा योग्य बे ॥ ६४ ॥ विशेषार्थ- पूर्वजवमां पांच पुरुषोनी स्त्री थवानुं नियाएं करनारी अने चारित्रधारी एवी सागरदत्त शेवनी पुत्री सुकुमालिका के, जे या जवमां द्रौपद राजानी पुत्री द्रौपदी तेथे विषयना रसधी मोहने यापनारा तपने फोगट गमायुं माटे ते मोह खेदकारी बे. ॥ ६४ ॥ द्रौपदी नी कथा. जेनो मणिमय किल्लो देवस्त्रीउना दर्पणपणाने पामेलो बे एवी अने सर्व गर्वधारी शत्रुने कंपावनारी चंपा नामनी महा नगरी बे. तेमां स्थिर मनवाला सोमदेव, सोमनूति श्रने सोमदत्त नामना त्रण सगानाइ ब्राह्मणो जाणे त्रण गुणोज होय नहिं शुं ? एम वसता इता. तेर्जने नुक्रमे प्रेममां पुष्ट एवी नागश्री, नूतश्री अने यशश्री नामनी त्रण स्त्री हती. ते त्रणे जाइए एवी व्यवस्था करी इती के, ते एक घरने विषे नेगा जमता ने त्रणे स्त्री वारा फरती एक एक दिवसे रसोइ करती. एक दिवस हर्षित मनवाली नागश्रीए पोताना वाराने दिवसे नाना प्रकारना रस छाने शाक विगेरेथी मनोहर रसोइ बनावी; पण तेणे ज्ञानपणाथी क्यारे पण न पकाववा योग्य एवं कडवी तुंबडीनुं शाक
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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