SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३२ शीलोपदेशमाला. शीखवी राखेली सखीए नवा नवा वस्त्रथी ढांकी राखेला थालो राजानी श्रागल मूक्या. राजाए पण थातुरताथी रोहिणी पासे तेना लावण्य र. सने पीवानी श्खा बतावी. पड़ी जूदा जूदा थालोमांथी रसोश्ने जमता एवा राजाए सर्व रसोश्नो एक स्वाद जाणीने आश्चर्यथी रोहिणीने पूब्युं. “ हे मुग्धे ! शाकना खादनीपेठे था सर्वे पदार्थो जोवामां जूदा जूदा देखाय बे; पण परिणामे खाद तो एकज मालम पडे बे." रोहिणीए कह्यु. “ हे राजन् ! विवेकसहित विचारवाथी मालम पडशे के, काऊवाना जलप्रत्ये दोडता एवा मृगनीपेठे कया पुरुषनी मुग्धता ? जो स्थान अने ढांकणना नेदथी रसमां कां विशेष नथी तो पड़ी रूप अने वेषादिकना नेदथी स्त्रीउने विषे शो नेद ? जेम कोई माणस भ्रांतिथी आकाशनेविषे अनेक चंडो देखे , तेमज कामना व्रमथी ब्रांति पामेलो कामी पुरुष स्त्रीनेविषे मोह पामे . वली जेम सूर्य सामुं जो३ रहेवाथी तेजवंत पर बलतो देखाय जे. तेमज मूढ पुरुषोने स्त्रीना दर्शनथी कामानि उत्पन्न थाय बे. हे देव ! तमे प्रजाउँने पितातुल्य बो अने सर्वनुं सरखी रीते रक्षण करनार डो उतां जो तमाराथीज अन्यायनी प्रवृत्ति उत्पन्न थशे तो पड़ी अमृतना समूहथी अंगारानी वृष्टि थई एम कहेवाशे. विषय सुख नरकना फुःखोनी खाण, सुगति संपत्तिर्जनी ग्लानी अने पापीउने पडवानुं स्थानरूप ले. वली अन्यायमां पाडेलाने वधारे शें कहीये? माटे हे राजन् ! पोताना कुलाचार, स्मरण करी था श्रवला मार्गनो त्याग करो." रोहिणीनां श्रावां वचनो सांजलीने उघडी गयां के ज्ञान नेत्र जेना एवा राजाए अन्यायरूप लिने मटाडनारी एवी रोहिणीनी क्षमा मागी अने कह्यु के, " हे जड़े ! पगले पगले कुराचारनो उपदेश करनारा घणां होय बे; पण सारा आचारनो उपदेश करनारा कोश्कज होय . हवे आजथी तत्वे करीने तुं म्हारी बहेन अथवा गुरु बुं. कारणके ते उष्ट यशरूप अंधारा कूवामांथी तें म्हारो उद्धार कस्यो ने." ए प्रकारे सतीने कदेतो एवो नंदराजा तेना सत्कार करी अने तेना गुणोने संजारतो बतो पोताना घरप्रत्ये गयो. हवे बीजा द्वीपमां घणुं धन मेलवानारो धनावर घणा कालथी प्रि
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy