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________________ शीलोपदेशमाला. दयंती प्रियाने दीठी. "था शी चेष्टा करे ?” ए जाणवाने माटे समुरुदत्त जेटलामां गनो उनो रहीने जूए ने तेटलामा घणो वखत थवाथी पण जेने निमा श्रावी नयी एवी नंदयंती शय्यामांथी उठीने उपवन ( बगीचा) मां गश् श्रने त्यां चंजनी कांतीथी उज्वल एवी शीलाने विषे सूती पण पतिना वियोगथी पीडा पामती अने दीन बनेली ते पतिव्रता शिलाने अंगाराथी तपेली गाडीना सरखी मानवा लागी तथा कोमल अशोकना पत्रोने पाथरीने सूती तो पण चंजना किरणोने दंड ( लाकडी) ना घा सरखा जाणवा लागी. वली बोलवा लागी के, “ हाय हाय! उतावलथी जता एवा पतिए मने बोलावी पण नहीं; तो हवे म्हारे जीवीने शुं करवू ?" पडी पतिना गुणोने वारंवार स्मरण करती अने वियोगथी विधुर बनेली नंदयंती फांसो खावाना विचारथी बगीचाना वृदनी पासे गश्. त्यां ते “ गुणनो समुझ ते समुदत्त म्हारो नवोनवने विषे पति था.” एम कहीने जेटलामा पोतार्नु उंढवानुं वस्त्र वृक्षनी डाले बांधीने पोताना गले बांधे जे तेटलामा समु. प्रदत्ते उबलीने ते वस्त्र कापी नाख्युं अने तेज दिवसे तुकालथी स्नान करेली तेने तत्काल उबलता स्नेहथी आलिंगन कझुं. पनी प्रसन्न थयेली वहाली प्रियानी रजा लश् समुदत्त पाहो वहाण प्रत्ये श्राव्यो अने कर्मना अनुकुलपणाथी समुज्ना सामे पार पहोच्यो. हवे अंतर्वनी (गर्भवती) सती नंदयंतीए पण उदरवृद्धि विगेरे गजना चिन्ह विना सुखथी त्रण मास निर्गमन कस्या. पली विदूर जूमिमां वैडूर्यनी शलाकानी पेठे अने नूमिमां डाटीराखेला धननी पेठे अनुक्रमे थोडे थोडे तेनो गर्न प्रगट थवा लाग्यो. सागरपोत शेठ पण वहुने जो विचार करवा लाग्यो के, “निश्चय म्हारा पुत्रनी था स्त्री असती बे; कारणके पुत्रना प्रस्थान वखते ते तुमती (रजखला) हती. का ले के- केवल उपरथी सारा आचरणवाली स्त्रीउनो विश्वास करवो नहीं; कारणके तेवी स्त्रीउनो विश्वास करवाथी किंपाक फल जक्षण करवानी पेठे घणुंज खराब फल मले . निश्चय था स्त्रीनो चांडालणीनी पेठे श्रमारी पंक्तिमाथी त्याग करवो जोश्ये, केमके कलंक रहित एवा श्रमारा कुलने विषे गलीनो डाघ न था.” एवो विचार करीने तत्काल
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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