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________________ ३१४ शीलोपदेशमाला. शेरो वहुसहित त्यांथी प्रयाण क. श्रागल जता कोश् वनने विषे वृक्षनी बायामां रथने बोडी शेठ रथ उपर बेसी नाथु खाइ विशामो खावा माटे सूझ गया. सारा श्राचारवाली शीलवती पण पोताना पितानुं घर पासे आव्यु जाणी हर्ष पामती ती नाथु खावा लागी. श्रा वखते पासेना केरडाना फाडनी उपर बेसीने को कागडो बोलवा लाग्यो. पक्षीउनी नाषा जाणवामां कुशल एवी शीलवती कागडानी नाषाने समजीने तेने कहेवा लागी के, “ हे काग! तुं शा माटे श्रा, कठोर बोले बे?" शीलवतीना आटला शब्द सांजली जागी उठेलो शेठ सूतो सूतो मनमां विचार करवा लाग्यो के, "अहो ! था वाचाल पुराचारिणी वहु पक्षीउनी साथे पण वातो करती लागे ." भावी रीते विचार करी शेठ कपट निसाथी सूतो सूतो वहुनी चेष्टा जोवा लाग्यो. करंबकने जो उत्साहवंत थएला कागडाने जाणी शीलवतीए अवसर जोश्ने कयु. “अरे काग! प्रथम शीयालना कहेवा प्रमाणे करवाथी हुँ पुराचारिणीनो अपवाद पामीने पतिनो वियोग पामी बुं श्रने हवणां त्हारा कहेवा प्रमाणे करूं तो पितानो मेलाप थवानो पण शंसय थर पडे.” पली जागता एवा शेठे या अभिप्रायवालुं वचन सांजलीने शीलवतीने पूज्युं के, “हे वत्से ! तुं पुर्विनीतपणुं केम कहे जे ?" शीलवतीए कयु. “ हे सासरा ! हुं साचुं कहुं बुं; कारण के, सर्व प्रकारे म्हारा गुणो चंदननी पेठे दोषने अर्थे थया ले. कर्वा के- पुष्पोनो समूह वृक्षनी डालोना जंगने अर्थे थाय जे अने सरल गतिवाला मोरने पीठानो नार वधने अर्थे थाय . वली सारी चालवालो अश्व बबदनी पेठे वारंवार रथमा जोडाय बे; माटे गुणवान् माणसने विषे गुणो निश्चय वैरी सरखा बे. हुं बाल्यावस्थामां म्हारा नाश्ना आग्रहथी सर्व शास्त्र नणीतुं, एटझुंज नहिं पण पदीउनी नाषा समजी शकवानुं शास्त्र पण जणी बु.” शीलवतीनां आवां वचन सांजली जेम सर्पथी दंश करायलो माएस गारुडीनां वचन सांजली तेनी पासे दोडी श्रावे तेम रनाकर शेठ फट रथमांथी नीचे उतरी ऊट शीलवतीदी पासे श्राव्यो. शीलवतीए कडं के, " ते दिवसे निर्लाग्य एवी हुँ मध्यरात्रीए तमारा जागता बता शीयालनो शब्द सांजलीने घडो लश् नदीए गश्. त्यां घ
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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