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________________ २५० शीलोपदेशमाला. मारा निंदित कर्मने जो कोढीया माणसनी पेठे तमारो त्याग करीने सर्वे तपस्वी बीजा वनमां चाख्या गया बे." एम कहीने ते मुनि पण बीजे स्थानके गया. __ पनी खेद पामेलो हरिषेण राजा पोताना श्राश्रममां श्राव्यो. यति जेम लक्ष्मीनी निंदा करे तेम पोताना कर्मनी निंदा करता एवा ते स्त्री पुरुषे सेंकमो वर्षना सरखा फुःख आपनारा बीजा चार मास पण तेज श्राश्रममां निर्गमन कख्या. पनी पूर्ण मास थये प्रीतिमतीए इंछित फल थापनारी कल्पवेलना सरखी पुत्रीने जन्म प्राप्यो. “कषिर्जुना प्रसादथीज श्रा पुत्री थापणने प्राप्त थ .” एम मानता एवा ते माता पिताए पुत्रीनु उत्तम अर्थवावु “इषिदत्ता” एवं नाम पाड्यु. पडी प्रीतिमती मरण पामी एटले हरिषेण तापसे ते पुत्रीने पाली पोशीने आठ वर्षनी करी. पडी “श्रा रुपवति पुत्रीने कोश् वनचरो उपजव करशे." एवो विचार करीने तेणे पुत्रीना नेत्रमा अदृश्यना कारणरूप अंजन श्रांज्यु के जेथी तेने को देखी शके नहीं. (श्री शादीश्वर प्रजुना देराशरनी पासे रहेनारा मुनि कनकरथ राजकुमारने कहे डे के,) " हे राजकुमार ! तेज हुं हरिषेण राजा ९ अने श्रा म्हारी पुत्री ऋषिदत्ता बे, के जेने में अंजन आंजवाथी कोश देखी शकता नहोता पण तमे दीठी जे.” पडी राजकुमार कनकरथ अने शषिदत्ता परस्पर पोतानी स्निग्ध दृष्टिथी एक बीजाना शरीरने जोता एवा जाणीने तथा तेना नावने समजीने मुनिए राजकुमारने कयुं. “ हे परूणा ! था कन्या त्हारे योग्य बे; माटे तुं तेने ग्रहण कर.” राजकुमार ते वातने कबुल करी शंकर जेम पार्वतीने परण्या हता तेम तेने त्यांज परण्यो अने नवोढा एवी ते इषिदत्तासहित मालतीनी साथे जमरानी पेठे केटलाक दिवस तेज थाश्रममा रह्यो. पली वैराग्यमां परायण एवा हरिषेण मुनिए पुत्री तथा जमाश्नी रजा ल पंच परमेष्ठि- स्मरण करता उता अग्निमां प्रवेश कस्यो; तेथी ऋषिदत्ता पृथ्वी उपर बालोटवा अने विलाप करवा लागी. कुमार कनकरथ अमृतसमान वाणीथी तेने बोध पमाडी अने प्रथम पोताना नगरथी जेने परणवा जतो हतो, ते रुक्मिणीनो त्याग करी केवल ऋषिदत्ता
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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