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________________ सुंदरीनी कथा. २०० क. हाथ रूप पात्रने धारण करनारा ने मौनधारी प्रजुए आर्य अने ना देशमां विहार करी एक वर्षे श्रेयांस कुमारने घरे प्रासुक एवा शेरडीना रसथी पारणं कस्युं. ते दिवसथी श्रेयांस कुमारना दृष्टांतयी दाधर्म विस्तार पाम्यो पढी उद्मस्थावस्थाथी सर्व देशमां विहार करता एवा प्रजुए एक हजार वर्ष लीला मात्रमां निवृत्त करुया. अयोध्यानी पासेना पुरीमताल पुरना शकटोयानमां न्यग्रोध ( वमवृक्ष )नी नींचे म तपधारी एवा प्रभुने केवलज्ञान उत्पन्न थयुं, जेथी देवतार्जए त्यां चवीने समवसरण रच्युं. श्रहिं चक्रवर्ती राज्य जोगवता एवा जरतराजानी सजामां यमक समक नामना बे पुरुषोए प्रवेश कस्यो. तेमां पहेलाए श्रीषन प्रभुने केवलज्ञान उत्पन्न यवानी वधामणी श्रपी ने बीजाए तेनी (जरतनी) श्रायुद्धशालामां चक्ररत्न उत्पन्न थवानी वधामणी श्रापी. पढी प्राणीना वधना कारणरूप चक्ररत्ननी पूजानी उपेक्षा करी भरत राजा ऋण लोकने य श्रापनारा पिता श्री कृषन प्रभुने वंदन करवा चाल्यो. त्यां उतर तरफना द्वारमांथी समवसरणमां प्रवेश करी सर्व माणसोसहित तेणे म्होटा आनंदथी तीर्थनाथने वंदना करी. पी जरत राजा हाथ जोगीने इंद्रना अर्धासन उपर बेठे ते प्रजुए सर्व प्राणीने पोतपोतानी जाषामां परिणमे एवी अमृत वाणीथी देशना दीघी. "ढे जव्यजनो ! जरावस्था, मनसंबंधी पीडा छाने देहसंबंधी पीमा इत्यादि मगरमच्छथी नरेला था संसाररूप कार समुद्रने विषे प्राणिने शुं सुख बे ? वली सेंकको दुःखोथी नरपूर एवा ने जेमां बिलकुल सुख नथी एवा या संसारने विषे मारवाड देशनी जूमिनी पेठे कयो पुरुष प्रीति करे ? खल पुरुषोनां वचन जेवा परिणामे क्रूर बे विषयो बे जेमां, तेमज पाकेला फलनी पेठे नाश पामवानो बे स्वभाव जेनो एवो बे प्रेम जेमां एवा या चातुर्गतिक संसारने दुःखरूप धारीने हे मनस्वीनो ! तमे सर्व प्रकारे मोहने माटे प्रयत्न करो; कारण के, सर्व प्रकारनी सावद्य विरति विना ते मोद दुर्व्वन बे. प्रजुनी यावी देशना सांजली जरत राजाना पांच पुत्रोए अने सात से पौत्रे ( पुत्रना पुत्रोए ) दीक्षा लीधी. जरते श्राज्ञा करेली ब्रा २७
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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