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________________ मदनरेखानी कथा. २०३ नेक देवांगना गायन करी रही हती एवो कोइ एक देव त्यां श्री वैमानमांथी नीचे उतस्यो. नम्र अंगवालो ते देव प्रथम त्रण प्रदक्षिणा करीने मदनरेखाना चरण कमलमां पड्यो पढी त्यांथी उठी मुनिने वंदना करी योग्य स्थानके बेवो. 66 श्रावो योग्य श्राचार देखी ने मणिप्रने देवताने पूब्युं. " तमे चतुर्झानी एवा साधुने उल्लंघन करी प्रथम स्त्रीने नमस्कार कस्यो !!! श्रावी रीते तमारा सरखा ज्यारे अन्याय करशे तो पढी अमारे शुं कहे ? " मणिप्रजानां वचन सांजली जेटलामां देवता उत्तर आपवा जाबे तेलामां चारणमुनिए तेने कयुं. या कृतज्ञ देवता बको श्रापवा योग्य नथी; कारण के ज्यारे या देवता पूर्व जवने विषे या मदनरेखानो पति युगबाहु हतो त्यारे तेने या सतीना लोजयी तेना म्होटा जाइए खगना प्रहारथी मास्यो हतो. युगबाहु क्रोध करवा लाग्यो, ते वखते या मदनरेखाए पोताना पतिने जिनधर्मनो उपदेश श्रापवारूप अमृत पान करावी शांत कस्यो हतो. पढी वृद्धि पाम्यो ने संवेग जेनो एवो ते युगबाहु मृत्यु पामीने पांचमा ब्रह्मलोकने विषे देवता थयो.” चारणमुनि मणिप्रमने कहे बे के, " हे विद्याधर ! तेज श्रा देवता! के जे पोताना धर्माचार्यनुं स्मरण थवाथी तत्काल श्रहिं श्रावी मुनिने त्याग करी प्रथम सती मदनरेखाने प्रणाम करयो डे. साधुए . थवा श्रावके जे पुरुषने जैनधर्मनो उपदेश दीधो एज तेनो धर्माचार्य कदेवाय ए निःसंशय बे. वली या लोकमां सम्यक्त्व एज डुन एवी सार वस्तु बे; माटे सम्यक्त्वनुं दान करनारा पुरुषे शुं न प्राप्यं कड़ेवाय ? अर्थात् सर्व श्रप्युं कड़ेवाय. " आवां चारणमुनिनां वचन सांजली मप्र ते देवता पासे क्षमा मागी . पी देवताए महासती मदनरेखाने कथं के, " हुं तमारुं शुं अभीष्ट करूं ? अर्थात् मने शी श्राज्ञा बे ?" मदनरेखाए उत्तर थप्यो के, "मने मिथिलानगरी प्रत्ये लइ जार्ज, के ज्यां म्हारो पुत्र बे पढी देवताए तेने आकाशमार्गवडे क्षणमात्रमां श्रीनमिनाथ ने मल्लिनाथना जन्मत्रते करीने पवित्र थली मिथिलानगरी प्रत्ये पदोचाडी. त्यां बन्ने जure चैत्योने वंदना करी साध्वी पासे जश्ने धर्मदेशना सांजली. प
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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