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________________ शाखा २६४ शीलोपदेशमाला मूलरुप बे. तो कयो विछान् पुरुष तेमनो स्वीकार करे ? वली चातुगतिक एवा था संसारमा परिज्रमणना कारणरूप अने किंपाक फलसमान एवा विषयने विषे कयो पुरुष अनुरक्त थाय ? माटे हे धनशेव ! जो श्रा त्हारी पुत्री म्हारे विषे गाढ अनुरागवाली होय तो मने प्रिय एवा संयमने हवणांज ग्रहण करे. कारण के नाशवंत स्वनाववाला, अल्प अने संसारथी उत्पन्न थएला एवा था संयोगवडे शुं ? मनुष्योए निरंतर मोक्षने अर्थे उद्यम करवो के ज्यां अनंत सुखनी प्राप्ति थाय .” __ इत्यादि वज्रसूरिनी देशनारूप अमृतना सिंचनथी शांत थडे मो. हनी पीडा जेनी एवी रुक्मिणीए तत्काल चारित्र धारण कखु. ए योग्य थयुं के जे धनशेठनी पुत्री रुक्मिणी मोहराजना बलथी वज्रस्वामीने पो ताना हाथने विषे ग्रहण करवाने श्छती हती; परंतु एज वज्रस्वामीए मोहरूप वृक्षनो नाश कस्यो. कारण जे थवानुहोय ते अन्यथा यतुं नथी. ते अवसरे श्री वज्रस्वामिनी देशनारूप जलथी सिंचित थएला अंकुरे करीने देदीप्यमान एवा केटलाक जव्य जनोरूप कल्पवृक्षने दीक्षा रूप फलो प्राप्त थयां. ___ पत्री श्री वज्रस्वामीए संघने अर्थे महापरिज्ञाध्ययनथी श्राकाशगा. मिनी विद्यानो उकार कस्यो. परंतु "श्रा विद्या मानुषक्षेत्र सुधीनी ." एम जाणीने तेमणे “ ते विद्या बापी शकाय एवी नथी.” एम संघने कडं. हवे तो श्री वज्रस्वामी श्रा आकाशगामिनी विद्याथी अने जंजक देवताए श्रापेली विद्याउँथी संघनेविषे महा प्रनाववंत थया. कोश व. खते विद्यार्जना जंगम समुज रूप ते अनुक्रमे सर्व देशमा विहार करता करता उत्तर दिशा तरफ गया. त्यां प्रजाउने पीडाकारी एवो महा दारुण उकाल पड्यो हतो; तेथी संघे श्रावीने तेमनी विनंती करी के, “ हे प्रनो! आ पुर्जिक रूप वनमां रांकरूप सेकडो सीयालो फरे जे; जेथी तेर्ड कोश्ने खावा देता नथी. वली अत्यारे तुधारूप राक्षसीनो मंत्र जागतो थयो के जेनाथी पिडा पामेला सर्वे धनवंत पुरुषो पण उपवास करे . तेमज योगी जेम परमात्मानुं ध्यान करे तेम सर्वे मनुष्यो, धान्यनुं ध्यान करे . ज्यारे ते धान्यने देखे जे; त्यारे तो जाणे परमा
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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