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________________ २४७ शीलोपदेशमाला. हवे नवाहु मुनि पोताना ध्याननो विरोध न थाय एटलामाटे ते सर्व साधुउने थोडी थोडी वाचना देवा लाग्या; तेथी उद्वेग पामेला ते सर्वे मुनि पोतपोताना स्थानके चाख्या गया. फक्त स्थूलना एकलाज रह्या. ते तो स्वधर्ममां तत्पर रहीने गुरुनी सेवा करवा लाग्या. तेथी ज्यारे महाप्राण ध्यान पूर्ण थयु; त्यारे गुरुए तेमने संतोष थाय एटलो पाठ श्रापवा मांड्यो, एटले समाधानरूप अमृतना पानथी प्रफुहित बुद्धिवाला स्थूलना बे वस्तु विना दश पूर्व जणी गया.. _ एकदा दीक्षाने धारण करी पृथ्वी उपर विहार करती एवी स्थूलनजनी व्हेनो पोताना नाश्ने वंदन करवा माटे त्यां श्रावी अने तेउए गुरुने पूज्युं के, “ हे स्वामिन् ! श्रमारो नाश् स्थूलजन क्यां ने ?” गुरुए उत्तर प्राप्यो के, “श्रागल अशोक वृदनी नीचे बेठगे बेठो खाध्याय करे बे.” स्थूलज पण श्रावती एवी पोतानी ब्हेनोने जोश्ने कौतुक जोवानी हाथी सिंहगें रूप धारण कटुं, एटलामां तो ब्डेनोए श्रावीने जोयु तो सिंह दीगे, तेथी ते जय पामी पाली गुरु पासे जश्ने कदेवा लागी. "प्रजो ! श्रमारा नाश्ने तो सिंह नक्षण करी गयो ने !!!” गुरुए फरीथी उत्तर थापतां जणाव्यु के, “तमे क्लेश करशो नहीं. तमारो ना कुशल , माटे फरीथी त्यां जर तेने प्रणाम करो.” गुरुनां वचन सांजली यदा विगेरे सर्वे बहेनो त्यां गश् अने स्थूलनने वंदना करी. पड़ी सिंहनी वात पूर्वी, एटले “सिंह स्वरूप में धारण कयुं हतुं.” एम स्थूलन कयु. पड़ी यहाए कयु. “हे जगवन् ! श्रीयके अमारी साथे चारित्र धारण कयुं हतुं; परंतु ते कुधा परिसह सहन करी शकतो न होतो. एक दिवस तेणे पर्वने दिवसे म्हारा कहेवाथी पोरसी करी. पोरसी पूर्ण थर एटले पारणुं करवाने छातुर थएला एवा तेने में फरीश्री कयु. “ तुं श्रा पुर्खन एवा पर्वने विषे पूर्वाण्हर्नु व्रत शुं नहीं करे ?” ए उपरथी तेणे लजाने लीधे ते व्रतने पण अंगीकार कडं. ते व्रत पूर्ण थया पठी में तेने अपराण्हनुं व्रत कराव्युं. त्यार पड़ी में " रात्री सुखेथी निवृत्त थ जशे.” एम बोध पमाडीने उपवासनु पञ्चखाण कराव्यु. पड़ी अर्ड
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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