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नेमिनाथना नवनवनी कथा.
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देवकी ने रुक्मिणी विगेरे स्त्रिए प्रभुपासे श्राविकानो धर्म यादस्यो. प्रमाणे चणुर्विध संघ रचवामां पहेली पोरशी पूरी थइ, तेथी बीजी पोरशीमां गणधरो धर्मोपदेश दीघो. त्रण मुखवालो, नरना वाहनवालो गोमेध नामनो यक्ष स्थाप्यो तथा शासननुं रक्षण करवामाटे सिंहना वादनवाली कुष्मांडी नामनी देवी स्थापी मनोहर ने श्राश्चर्यकारी प्रातिहार्य सहित लोकने प्रकाश करनार जगवाने पृथ्वी उपर विहार करीना देशना घणा जव्य जीवोने बोध कस्यो. प्रभुना अढार हजार साधु, चालीश हजार महासती साध्वीउ, एक लाख उंगणोतेर इजार श्रावको, ऋण लाख अंगणचालीस हजार श्राविकार्ड, पंदरशें छात्रविज्ञानी, पंदरशें केवलज्ञानी, पंदरशें वैक्रियलब्धिवाला, चौदशें दपूर्वधार ने अढारसें मनः पर्यवज्ञानी हता. ए प्रकारे परिवार सहित विहार करता ने धर्मनो उपदेश करता ते श्री नेमिनाथ मुक्तिरूप स्त्रीने वरवानी इछाथी फरीने पाढा गीरनार उपर श्रव्या. त्यां
य देशना सांजलीने केटलाके सम्यक्त्व धारण करयुं, केटलाके दीका लधी ने केटलाके श्रावकनो धर्म अंगीकार करो. पी पांचशे ने
त्री शांत एवा महामुनिसहित नेमिनाथे पादपोपगमन अनशन ल संथारो करो ने आषाढ शुदी आठमने दिवसे ने चित्रा नक्षत्रमां चंद्रनो योग बते सिद्धिरूप स्त्रीना वक्षःस्थल 'बाति' ने विषे श्रलं - कारताने पाम्या अर्थात् मोक्ष पाम्या. प्रद्युम्न सांब विगेरे कुमारो, नेमिनाथना जाइ अने कृष्णनी पटराणी विगेरे पण जगवाननी सेवा करवा थकी मुक्तिना पात्र थया. मुक्त श्रात्मावाली राजीमती पण सावना समूह सहित नेमिनाथनी गतिनेज पामी नेमिनाथना मातापिता चोथे देवलोके गयां बीजा पण दशाईकुलमां उत्पन्न थयेला पुरुषो देवगति पाम्या. त्रणसें वर्ष बाल्यावस्थामां ने सातसें बद्मस्थ तथा केवली व्यवस्थामां एम प्रजुनं श्रायुष्य एक हजार वर्षनुं हतुं.
हवे देवता जगवानना शरीने चंदनयुक्त सुगंधि जलथी नवराव्यं, नैरुत्य खूणे गोशीर्ष चंदनथी चीता करीने श्रग्निकुमारे श्रमि की धो; वायुकुमारे वायु नाख्यो; मेघकुमारे अग्नि शांत करयो एटले इंडे नगवाननी डाढ लीधी अने बीजी देवतार्जए अस्थी 'हाडकां' लीधां, वस्त्रो