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[४] संबंधक भूतकृदंतः
पि-गंपि (५. १७२.) एप्पि-गेण्हेप्पि (१४. गीत.१.) एप्पिणु-मेल्लेप्पिणु (१. २.) लेप्पिणु (१. २.) ३० इवि-अहिसिंचिवि (१. ८८.) अविवि (१. ८८.) मयलिवि
(१. १०) इ० एवि-पेक्षेवि (१. २२.) निउड्डेवि (१. ४६.) १० एषिणु-करेविणु (७. ८.) मारेविणु (१४. गीत. २.) १० इ-छडि (१३. १५.) कप्पि (१४. गीत. १.) इ. इय-थिय (१. ४३.) आरक्खिय (१. ४३.) इ. ई-बइसी (६. १९.) इ० ऊण-पुज्जिऊण (६. ७९.) गिहिऊणं (६. ८१.) नाम
ऊणं (४. २२२.) इ० उ-खरी रीते आ प्रत्यय हेत्वर्थ कृदंतनो छे, छतां पण संबंधक
भूत कृदंतनो अर्थ बताववा तेने वापरवामां आवे छे, दा. त.
सोउं (४. २२२.) तोडिउं (६. ८७.) इ० [५] हेत्वर्थ कृदंतः--
इउं-संस्कृतनी अनुकृतिथी देसिङ (६. १६५.) णिएउं (६. २९.)
विहावडे (३. १२०.) . इवि-संबंधक भूतकृदंत हेत्वर्थ कृदंत तरीके वापरवामां आवे छे.
दा. त. डहिवि (२. १३३.)
आ कृदंत, अण तद्भितथी क्रियापदाथी बनेला नामने षष्ठीनो प्रत्यय लगाडवाथी बने छः दा. त. अच्छणहं (४, २६८.) मुणहु (५. २१.) णासणहं (२. १००.)