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४१ (ग) स्न्ह । हाइविस्रात्वा (५. ९०.) परन्तु णेह-स्नेह
(५. १६.) स्म्स । सरइ-स्मरति (६.१२.) अने सुमरह (४.१३५.)
शब्दान्तर्गत संयुक्तव्यंजन. ६ ३८. शब्दान्तर्गत संयुक्त व्यंजन नीचे प्रमाणे अपभ्रंशमां होई शके:
[१ बन्ने य क ज प्रकारना व्यजन होय; दा त. वुत्त, मुक्क खग्ग इ० के प्रथम व्यजन + द्वितीय ( ते ज वर्गना) सोष्म व्यंजन = संयुक्त व्यंजन दा. त. अक्खर, वग्घ, अच्छ, वज्झ, अट्ठ, अड्ढ, अत्थ, अद्ध, पुष्फ, सब्भाव इ०
[२] पह, म्ह, ल्ह दा. त. कण्ह, पम्ह, पल्हत्थ (सि. हे. ८ । ४। २००; जो के अपभ्रंशमांथी ल्ह अदृश्य थतो जाय छे.)
[३] व्यंजन+र (सि. हे. ९।४ । ३९८-९९. जुओ ६ ३७.) केवळ बोलीमां, प्रकृष्ट अपभ्रंशमां नहि.
[v] अनुनासिक व्यंजन + व्यंजन, हाथप्रतोमा अनुनासिक व्यंजनने पूर्व स्वर पर अनुस्वार मुकी बताववामां आवे छे दा. त. सिंचइ. छंमुह के छम्मुह ३० ६ ३९. संस्कृतने प्रकृति लेखी, नीचे जणाचेली प्रक्रिया अपभ्रंशमां मालम
पडे छः [१] संयोजन (Assimilation)
(अ) प्रगामी संयोजन (Progressive Assimilation). (ब) अनुगामी संयोजन (Regressive Assimilation). (क) विशिष्ट संयोजन (Special Assimilation). संयोजन थतां संयुक्त स्वरनी पूर्वे दीर्घ स्वर होय तो ते ह्रस्व थाय छे. [२] प्रतिसंयोजन ( Simplification ) आ प्रक्रिया संयोजनथी उलटी ज छे तेथी तेने प्रतिसंयोजन एवं अभिधान आपलं छे.
(अ) संयुक्त व्यंजननी संयुक्तता दूर करवी होय तो तेनी पूर्वेना इस्व स्वरने दीर्घ करवो अने संयुक्त व्यंजनने असंयुक्त करवो; दा. त. सहस्स (सहन (संयोजन); सहास <सहस्स (प्रतिसंयोजन) (३. ६१.) आ