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________________ ४० (१) जे आदि संयुक्त व्यंजननो द्वितीय व्यंजन य्, र्, लू, वू होय मां प्रथम व्यंजन राखी द्वितीयनो कोप करवामां आवे छे. य् । जोइसिउ-ज्योतिषिन् ( ३. २९) चुक्की = च्युता ( ३. ६९.) वावारउ = व्यापार (१. ७८.) चयइ = त्यजति ( ४.२२४.) वामोह = व्यामोह (१. ६६.) र् । कील = क्रीडा (१- ५६.) सुब्वा = धु+अति (१ पडिवत्त = प्रतिपत्ति (१.१०६ . ) ११०) पेम्म = प्रेमन् (५.२३) इ० यू | जालइ -ज्वालयति (५. ४०.) सर = स्वर (५. १४९.) दीव = द्वीप (६.१.) (२) र् नी पूर्वे सू के कोइ बीजा व्यंजन, व् नी पूर्वे स् तो केटलांक उदाहरणमां विप्रकर्ष स्वरनो प्रक्षेप करवामां आवे छे; अने ऌ नी पूर्वे कोइ पण व्यंजन आव्यो होय तो पण आज प्रक्रिया थाय छे. (जुओ (१८.) (३) संयोजन ( Assimilation ) : सामान्य रीते आदि संयुक्त व्यंजनोना प्रकारोमां आदि सू युक्त संयुक्त व्यंजनोमां संयोजन थाय छे. (क) सु + कोइ पण वर्गनो प्रथमाक्षर ( तालव्य अने मूर्धन्य वर्गना प्रथमाक्षर बिना ) = तेज वर्गनो द्वितीयाक्षर ( आ प्रक्रियामां स=ह थई तेनो व्यत्यय थाय छे अने स्पर्शने सोष्मत्व अर्पे छे) दा. त. खंध = स्कंध ( ३. २०१) खलिय= स्खलित (५. १८. ) थंभ = स्तंभ ( ६. १०६.) थुइ = स्तुति (६. १५६.) थण = स्तन (७४) फंसह = स्पृशति (६.८० ) फंसइ = स्पंदते (६.५४ . ) थोव - स्तोक ( ६. ५५.) [ जुओ § ३० (न) ] (ख) सु + तालव्य अने मूर्धन्य सिवाय कोई पण वर्गनो द्वितीयाक्षर = तेज वर्गनो द्वितीयाक्षर दा. त. खलइ = स्खलित (१. २६) थिअ = स्थित ( ३. ५०.) फार = स्फार (५. ५८ . ) — परंतु सामान्यतः उपरनो नियम होवा छतां कोहक दृष्टांतोमां सहू नी असर सोष्म व्यंजन पर निष्फळ जतां बीजा अक्षरो उपर संक्रमे छे. दा. त. फडिय= स्फटिक भविसयत्तसहामां व्यापृत ; छतां वधारे प्रचलित रूप फलिह - स्फटिक (१. ६०) मां अंतिम अ-ह ते आदि सू ने लीधे. ते ज प्रमाणे थाह < हू+थाअ = स्थात * ( ५. १२२.) चिहुर <श्चिकुर * चिकुर
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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