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________________ (ख) इ [१] संयुक्त व्यंजनमां एक अनुनासिक होय तो लिचिण-स्वप्न (५.३३) [२] संयुक्त व्यंजनमां एक य् होय तो दा. त. आरिय= आर्य, अच्छरिय= आश्चर्य [३] संयुक्त व्यंजनमां एक र् होय तो दा. त. किरिया = क्रिया, फरिस - स्पर्श, वरिस = वर्ष ( ५.९१. ), सिरि= श्री (१.१३.), अमरिस = अमर्ष (२.६१.), तम्बिर = ताम्र, (६.३८ ) हरिसिय- हृष्ट (१.४१ ) [४] संयुक्त व्यंजनमां एक लू होय तो दा. त. किलेस - क्लेश (३.४), किलिण्ण = क्लिन्न (५.२२.) अम्बिल =आम्ल (ग) उ । संयुक्त व्यंजनमां एक औष्ठ्य के ब् होय तो दा. त. सुमरह - स्मरति (४.३१५) $ १९. स्वरलोप (क) आदिस्वरलोप [ Aphaeresis ] – [१] स्वरभार विनानो आदि स्वर सामान्यतः लुप्त थाय छे. दा. त. हउं = अहकम् * ( ३.१५.) हिट्ठा = अधस्तात् (४.१०३.), वलग्ग = अवलग्न (१.७५). रण - अरण्ण (५.१८४) रविंद= अरविंद (६.४०) बइसइ = उपविशति (१३.६) वरि= उपरि ( ७.१२३) [२] केटलाक निपातोनो आदिस्वर कुप्त थाय छे. दा. व. सो= अतः ( ३.३४.) वि= अपि (३.६८.), व= इव (६.१०१) [३] संधिने कारणे आदिस्वरनो कोप [जुओ १२३. (छ)] छन्दना कारणे पण तेनो लोप थाय छे. [जुओ. अ.पा. (टि.) १.३६.] (ग) अन्त्यस्वरलोप तृतीया एकवचनना इन = अपभ्रंश एँ थतां अन्तनो अ लप्त थाय छे. रामें= रामेण (घ) मध्यस्वरलोप [ Syncope] मध्यगत स्वरमार बिनाना स्वरविशेषतः प्र- छप्त थई जाय छे. दा. त, पोप्फल-सं. पूगफल [जुओ टिप्पणी १. ३६. सदर ग्रंथ ] समुष्णोष्ण = समुण्णओण्णअ [ ६. ३१] भविसत्त= भविस्सअन्त्त (३.२ ) $ २०. आदिस्वरागम [Prothesis of Vowels]
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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