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उक्खय-सं. उत्खात ( सि.हे.८.१.६७. ) विरुअ-सं. विरूप (२.११०) इ. [२] जो पछी आवता स्वर पर स्वरभार होय तो ठविय=सं. स्थापित, (५.१७८) कुमर=सं. कुमार । सि.हे. ८.१.६७ ) गहिय-सं. गृहीत, (४.२२६.) गहिर-सं. गभीर (३.१५२) इ. [ विस्तृत चर्चा माटे जुओ३२.]
(ख) केटलीक वार अपभ्रंशमां दर्घ स्वर- इस्वीकरण मात्रामेळ खातर के कोइ अज्ञात उच्चारपरंपराने अनुसरीने पण करवामां आव्यु होय छे.
(ग) संयुक्त व्यंजननी पूर्वे आवेला दीर्धस्वरो सामान्य रीते हस्व थाय छ; अने ए नो इ अने ओ नो उ थाय छे. दा.त. रज्ज-सं, राज्य(५.३०) फग्गुण-सं. फाल्गुन ( १.५. ), अप्पा-सं. आत्मा (६.१४.),नरिंद-सं. नरेन्द्र (६.१४६.), अत्थाण= सं. आस्थान (३.१४६.). . (घ) संयुक्त व्यंजन पूर्वेना ए अने ओ इस्व थाय छे. दा. त. लए. प्पिणु (१.१०६) परोप्परु ( ३ ३४ ); परंतु आ हस्व ए अने ओ तेनी पछी आवता संयुक्ताक्षरना अन्वये द्विमात्रिक ज थाय छे.
(च) [१] सामान्य रीते स्त्रीलिंग आकारांत अने इकारांत नामोना आ अने ई ह्रस्व थइ जाय छे.दा.त. सीय-सीता (२.२४.), तियड-त्रिजटा (२ ३४.), दोवइ-द्रौपदी (३.६१.), चिंत-चिन्ता (३.६.), कह-कथा (३.८.), वेणिवेणी (३.२४.), समि-शमी (३.३५.), [२) छंदोमेळ खातर कोइ वार आ के ई राखवामां आवे छे; पण आनां दृष्टान्तो ओछां छे. [३] केटलाक निपातोना अंत्य दीर्घ स्वर हस्व करवामां आवे छेः दा. त. मम्मा , (१३.१२.) विण-विना, (९.४.) व=वा (९.४.) इ.
(छ) कोइ वार अन्तोदात्त शब्दोमा असंयुक्त व्यंजननो पूर्ववती दीर्घ स्वर ह्रस्व थई जाय छे अने व्यंजन द्वित्व पामे छे. दा. त. जोव्वण-यौवन (१.९७.) पेम्म प्रेमन् , (५.२२.) दिज्जइ दीयते, तेल्ल-तैल. (९.४२.)
आ नियमने अनुसरी इक्क के एक-एक समजावी:शकातो नथी. [जुओ $ ३२ ] ६५. इस्वस्वर, सानुस्वारत्वः
[$३ (क)] मां दर्शावेला संयोगोमां कोइ वार ह्रस्वस्वर दीर्ध थवाने बदले सानुस्वारत्व प्राप्त करे छे. दसण-दर्शन (७.६०.), फंस-स्पर्श, (६.८०), अंसु-अश्रु (६. १०४.) इ०