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एक दिवस तेना सहाबके तेने समझण पाडी के, " तुं तो निरोधनमां छे. अने नगरलोकोए तने बंधनमा नखाव्यो छे." आ वचन सांभळी तेणे राजमहेलमाथी नीकळवा यत्न को; पण प्रतिहार ए तेने अटकाम्यो अने कह्यु, "तमारा हित माटे तमाएं निगमन राजाए अटकाव्यु छे." ( ५) वसुदेव रात्रे महेल छोडी स्मशानमां आवी पहोंचे छे. स्मशानचं वर्णन कवि करे छे. (६) श्मशानमां वसु. देवे एक बळतुं मृतशरीर जोयु. तेणे पोतानां वस्त्राभरणो ते मृतदेह पर नाख्या. एक पत्रमा पोताना मरणनी वात लखी, ते पत्र पोताना घोडाना गळे बांथ्यो; अने पछी ते यथेष्ट चाली नीकळ्यो. सवास्मां तो महेलमा खबर पडी. राजाए बघे ग वसुदेवनी शोध करावी. छेवटे श्मशानमा राजाना एक चरे घोडो भने तेने गळे बांधेलो पत्र जोयो. तेणे ते लावो राजाने आयो. राजाए ते वांच्यो. स्वजनोए श्मशानमा मडईं बाळयु; अने हाहाकार थयो. (६) नव दशाह बंधुओ शोक करवा लाग्या. समुद्रविजयनी पत्नी शिवदेवीनो विलाप आपवाम आयो छे. नैमित्तिको राजा समक्ष जोष भाखे छे के सो वर्षे वसुदेवकुमारने मेळो थशे. (७) आ तरफ वसुदेव विजयनगर आवी पहोंचे हे. मैने उद्यानम आराम ले छे. उद्याननुं श्लेषात्मक वर्णन. वसुदेवना पुण्यसामर्थ्यथी सूक सोने पान आवे छे. राजाना जोषीए भविष्य भाख्युं तुं के जेना र बेसवार्थ । वृक्ष लीलु थई जाय, ते युवान राजकुमारीनो वर थशे. आ बनेलु उद्यानपाले. जीयु अने तेणे ते राजाने जणाव्यु. (८) सांभळी राजा जाते त्यां आव्यो; अने तेगे युवान राजकुमारने नगरमा प्रवेश कराव्यो. पोतानी दीकरी श्यामादेवीने राजाए वसुदेव साथे परणावी. केटलाक दिवस पोतानी प्रिया साथे रही, वसुदेव बहार नीकळ्यो अने देवदारुना वनमा प्रवेश्यो. वननुं वर्णन. त्यां तेणे. एक सरोवर जोयं. (९) सरोवरचं वर्णन, क्षीरसमुद्रमा रहेला मेरुपर्वतसमा हाथीने तेणे सरोवरमां निहाळ्यो. (१०) हाथीनुं वर्णन; वसुदेवनुं तेनी साथे युद्ध; वसुदेवनी जीत. विद्याधरे अंधकवृष्णिना पुत्र वसुदेवनु भा पराक्रम जीयु; अने तेणे वसुदेवने उंचकी लीधो. (११) पछी विद्या पर वसुदेवने अशनिवेग नामे यक्षराज पासे लई गयो; अने तेणे तेने जणाव्युं " आने विगा हरायः छे; माटे ज्ञानीओए कह्या प्रमाणे आपनी दुहितानो आ वर छे." अशनिवेगे पोतानी राणी पवनवेगाथी जन्मेली सामरी नामनी कन्या साये वसुदेवने परणाव्यो. वसुदेवे बहु दिवस प्रेममां भासक्त थई गाळ्या. एक वार ते सूतो हतो त्यारे अंगारक नामना विद्याधरे तेने जोयो. " विवेकहीन मामाए आ भूमिचा जनने पोतानी सुता आपी छे ! " आम बोली तेने पोतानी बाथमां लई ते छज्यो अने सामरी तेनी पाछळ ऊडी, वसुदेवना समां वसुनंदक नामनी अमेय तरवार